महाराष्ट्र को पूरी तरह से हिलाकर रखने वाले सचिन वाजे की कहानी बिलकुल फिल्मी है। कोल्हापुर जैसे छोटे से शहर से निकलकर मुंबई की सड़कों पर गैंगस्टरों के खून से होली खेलने वाला वाजे कभी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा के खासमखास अफसर के तौर पर जाना जाता था, लेकिन साए से निकलकर अपनी पहचान बनाना उसे बखूबी आता है। आतंकवाद के मामले के एक आरोपी की माने तो वाजे जब उसे गिरफ्तार करने आया तो उसने लिविंग रूम में बैठकर बड़े आराम से पहले चाय की चुस्कियां लीं और फिर जिस कप में चाय पी, उसे ही चूर-चूर कर दिया।
क्रिकेटर और बेहतरीन एथलीट रहे वाजे का नाम 60 एनकाउंटरों से जुड़ा। 27 साल के इंजीनियर ख्वाजा युनूस की कस्टोडियल डेथ ने इस फेहरिस्त को आगे बढ़ने से रोक दिया। 2004 में उसे सस्पेंड कर दिया गया। एड़ी से चोटी तक का जोर लगाने के बाद भी वाजे पुलिस में अपनी बहाली नहीं करा सका तो उसने 2008 में इस्तीफा दे दिया। लेकिन वह खत्म नहीं हुआ।
पुलिस की नौकरी से दूर रहकर उसने तमाम काम किए। शिवसेना की मेंबरशिप लेने के अलावा वह अपने क्रॉस कंट्री बाइकिंग के शौक को पूरा करने लगा। उसे लिखने का भी शौक है। वाजे ने शीना बोरा मर्डर केस पर किताब लिखने के साथ आतंकी डेविड हेडली के किस्से को भी कलमबंद किया। इस दौरान वह कई टीवी शो में भी दिखा। उसने Lai Bhari नाम से सोशल नेटवर्किंग साइट शुरू की।
2013 में उसके ऊपर एक मराठी फिल्म बनी। एक मराठी फिल्म मेकर के साथ कानूनी विवाद को लेकर भी वह सुर्खियों में रहा। उसने निर्माता पर पांच करोड़ का कॉपीराइट उल्लंघन का केस दायर किया था। हालांकि, बाद में मामला कोर्ट के बाहर ही सुलझ गया। वाजे के आरोप के मुताबिक, निर्माता ने उसकी सोशल साइट के टाइटल Lai Bhari का गलत इस्तेमाल किया। उससे जुड़े लोग बताते हैं कि नौकरी से दूर रहकर भी वह बगैर वर्दी वाला कॉप बना रहा। उसने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने का दावा किया जिसके जरिए लोगों की काल सुनने के साथ उनके मैसेज भी पढ़े जा सकते हैं।
वाजे ने 1990 में पुलिस सर्विस ज्वाइन की थी। पहली बार वह सुर्खियों में तब आया जब उसने थाणे के गैंगस्टर सुरेश मंचेकर के नकेल डाल दी। उसे मुंबई लाया गया। यहां वह CIU (क्राइम इंटेलीजेंस यूनिट) से पहली बार जुड़ा। प्रदीप शर्मा के संपर्क में वह यहीं पर आया। यह वह दौर था जब प्रदीप शर्मा के साथ विजय सालास्कर, दया नायक जैसे अफसरों की धमक अंडरवर्ल्ड से लेकर बॉलीवुड तक सुनी जाती थी।
2019 का साल वाजे से लिए वरदान की तरह से रहा। शिवसेना सत्ता में लौटी तो उसे फिर से नौकरी में आने का मौका मिला। इसमें मुंबई के कमिश्नर रहे परमबीर सिंह का भी खासा योगदान रहा था। उनके साथ वाजे की जुगलबंदी थाणे के समय से रही। परमबीर तब वहां के पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे। जून 2020 में वाजे के साथ 18 अफसरों को बहाल किया गया। इसका कारण बताया गया कि कोविड में 99 अफसर कोविड के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं। लिहाजा अफसरों की बेहद ज्यादा जरूरत है।
बहाली के हफ्ते भर के भीतर वह CIU में तैनात हो गया। यहां उसे कुछ हाई प्रोफाईल केस मिले। इनमें टीआरपी स्कैम, ऋतिक रोशन विवाद, दिलीप छाबड़िया केस शामिल था। रिपब्लिक के अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने गई टीम को वाजे ने ही लीड किया था। दोबारा नौकरी में आने के बाद वाजे अपना कद लगातार बढ़ाता रहा। एसीपी और डीसीपी की तो वह परवाह ही नहीं करता था। उसकी मुंबई कमिश्नर के दफ्तर में सीधी पहुंच थी।
वाजे ने अपना कद किस कदर बढ़ा लिया था, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अर्नब मामले में जब पत्रकारों ने उससे कहा कि रायगढ़ पुलिस जानकारी नहीं दे रही। वाजे ने रायगढ़ के एसपी से भी सीनियर अफसर को फोन लगाकर कहा, मीडिया को इस मामले की जानकारी दे दी जाए। लेकिन आखिर में उसका यही अति आत्मविश्वास खुद उसके साथ मुंबई पुलिस को भी ले डूबा।
वाजे के साथ ही बहाल होने वाले एक अफसर का कहना है कि पहले दौर की गलतियों से सबक सीखकर उन्होंने खुद को लो प्रोफाइल कर लिया था। वह खुद को खुशकिस्मत मानते हैं कि उन्हें दोबारा नौकरी में आने का मौका मिला। सालों के अनुभव से उन्हें इस बात का एहसास हुआ था कि बेवजह की चमक दमक किस तरह से गर्त की तरफ भी ले जाती है। लेकिन लगता है कि कुछ ने इस बात को आत्मसात नहीं किया। अफसर का इशारा मुंबई कॉप सचिन वाजे की तरफ ही था।