तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि ने सेंथिल बालाजी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करके एक नया संकट खड़ा कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने एक अहम फैसले में गवर्नर को उसकी हद बता रखी है। लेकिन फिर भी आरएन रवि ने मंत्री को सरकार से बाहर का रास्ता दिखा ही दिया। हालांकि कुछ घंटों बाद ही उन्होंने अपने आदेश को वापस लेकर कानूनी सलाह मांगी है। लेकन स्टालिन गवर्नर के पहले के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं। जाहिर है कि मामला अब यहीं पर थमने वाला नहीं है। गवर्नर की शक्तियों को अदालत परिभाषित कर सकती है।

संविधान के आर्टिकल 164 (1) में कहा गया है कि चीफ मिनस्टर की नियुक्ति गवर्नर करेगा। कैबिनेट के बाकी मंत्री सीएम की सलाह पर गवर्नर के जरिये ही नियुक्त किए जाएंगे। मंत्री तभी तक सरकार में शामिल रहेंगे जब तक गवर्नर को ठीक लगता रहेगा।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने गवर्नर के हाथ काफी हद तक बांध दिए। शमशेर सिंह बनाम पंजाब के फैसले में 1974 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गवर्नर अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल केवल और केवल सीएम की सलाह पर ही कर सकेगा। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिया था। लिहाजा उसे दरकिनार करना मुमकिन नहीं है। लेकिन फिर भी तमिलनाडु के राज्यपाल ने सेंथिल बालाजी को कैबिनेट से हटाकर अपनी शक्तियों का जायजा लेने की एक कोशिश की। जाहिर है आगे कोर्ट दखल देगा ही।

लोकसभा के सेक्रेट्री जनरल रहे अचारे कहते हैं- ये पहली बार है जब गवर्नर ने सीधे ऐसा किया

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक लोकसभा के सेक्रेट्री जनरल रहे पीडीटी अचारे कहते हैं कि ये पहली बार है जब गवर्नर ने सीधे किसी मंत्री को बर्खास्त किया है। इससे पहले ऐसा कभी भी नहीं देखा गया। बगैर सीएम की सलाह या सिफारिश के गवर्नर न तो मंत्री को नियुक्त कर सकता है और न ही बर्खास्त। बीते साल केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी सीएम पिनरई विजयन को एक चिट्ठी लिख वित्त मंत्री केएन बालागोपाल के खिलाफ एक्शन लेने को कहा था। लेकिन सीएम ने अगले ही दिन मीडिया के सामने आकर बता दिया था कि राज्यपाल की शक्तियां कितनी सीमित हैं।