पूरा फैसला तैयार किए बगैर उसे कोर्ट में पढ़ देने वाले सिविल जज को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से डिसमिस कर दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट की डबल बेंच ने अपने ही प्रशासनिक फैसले को खारिज कर जज को बहाल कर दिया था। लेकिन रजिस्ट्रार जनरल ऑफ कर्नाटक ने हाईकोर्ट ने उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर गौर करने के बाद माना कि सिविल जज रहे एम नरसिम्हा प्रसाद ने अपने बचाव में जो दलीलें दी हैं वो गले नहीं उतरतीं।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी सुब्रमण्यम और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि सिविल जज नेअपने बचाव में कहा है कि उनका स्टेनो काम को ठीक तरीके से न तो जानता था और न ही वो काम में दिलचस्पी दिखाता था। इसी वजह से ये सारी गफलत पैदा हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज को फटकार लगाते हुए कहा कि ये दलील बेहद बचकाना है। उन्हें नहीं लगता कि सिविल जज को इस तरह की बात बचाव में कहनी चाहिए थी।

फैसला तैयार हुए बगैर कोर्ट में सुना देता था सिविल जज

बेंच ने कहा कि जूडिशियल अफसर पूरा फैसला तैयार हुए बगैर उसके अहम अंश ओपन कोर्ट में नहीं सुना सकता। ये कानून की परिभाषा में सही नहीं बैठता। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि स्टेनो के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करके जज को क्लीन चिट देना सरासर गलत है। बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इतने गंभीर मामले में जरूरी पहलुओं पर ध्यान दिए बगैर आरोपी को मासूम करार दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल जज ने जो किया वो जूडिशियल प्रोसेस पर धब्बा था। लेकिन हाईकोर्ट ने सारे मामले पर लीपापोती कर दी।

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2005 में किया गया था सस्पेंड, 2009 में डिसमिस, हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कर दिया था बहाल

मामले के मुताबिक जज को 2005 में सस्पेंड किया गया था। जांच में उस पर लगे कई आरोप सही साबित हो गए थे। दूसरे नोटिस के बाद हाईकोर्ट की फुल बेंच ने जज को डिसमिस कर दिया। 2009 में गवर्नर ने भी फैसले को मंजूरी दे डाली।

आरोपी जज ने जांच रिपोर्ट के आधार पर डिसमिस करने के फैसले को चुनौती दी। लेकिन सिंगल जज की बेंच ने फैसले को सही करार दिया। आरोपी ने इस फैसले को भी चुनौती दी। 2011 में ये अपील दाखिल की गई। डबल बेंच ने मामले की सुनवाई की और सिंगल जज की बेंच के फैसले को दरकिनार कर जज को फिर से नौकरी में बहाल कर दिया।