दिल्ली के 78 वर्षीय निवासी नरेश मल्होत्रा, एक सेवानिवृत्त बैंकर हर रोज साउथ दिल्ली के गुलमोहर पार्क में लोगों से मिलते-जुलते थे, कॉलोनी के पार्क में टहलते थे, दोस्तों के साथ बैठते थे और क्लब भी जाते थे… लेकिन इनमें से कोई भी उनके साथ चल रही असमान्य घटना को भांप नहीं पाया।
वे पिछले छह हफ्तों से परेशान थे। बेबस थे कि अपनी मेहनत की कमाई खुद खर्च नहीं कर पा रहे थे, लेकिन फिर भी चुप रहे और अपने परिवार को कुछ नहीं बताया।
नरेश मल्होत्रा सिर्फ गुपचुप तरीके से इन छह हफ्तों के बीच तीन बैंकों में गए थे। उनकी तरफ से 22.92 करोड़ रुपए निकाले गए और फिर वही पैसा 21 लेन-देन के जरिए 16 अलग-अलग बैंकों में जमा हो गया।
हैरानी की बात यह थी कि जिन तीन बैंकों से नरेश मल्होत्रा पैसे निकाल रहे थे, वहां के मैनेजरों को कोई शक नहीं हुआ। एक बैंक शाखा ने तो यहां तक कहा कि मल्होत्रा तो लेन-देन करते समय भी चाय पीते थे। ऐसे में किसी को कुछ गलत नजर ही नहीं आया। लेकिन तब तक नरेश मल्होत्रा एक डिजिटल अरेस्ट में फंस चुके थे। आलम यह था कि उन्हें अपने हर खर्चे के लिए धोखेबाजों से अनुमति लेनी पड़ रही थी। ये धोखेबाज खुद को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और मुंबई पुलिस का अधिकारी बता रहे थे।
छह हफ्तों तक यह सब चलता रहा। लेकिन फिर नरेश मल्होत्रा को लगा कि अब उन्हें शिकायत करनी ही पड़ेगी। क्योंकि वे अपनी मेहनत की कमाई में से 22.92 करोड़ रुपए गंवा चुके थे। ऐसे में 19 सितंबर को उन्होंने एफआईआर दर्ज करवाई और फिर शुरू हुई चोरी हुए पैसों और अपराधियों को पकड़ने की कोशिश।
इस मामले को लेकर जॉइंट कमिश्नर ऑफ इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस, रजनीश गुप्ता बताते हैं कि हमने इससे पहले भी बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन देखा है। लेकिन समझने वाली बात यह है कि ऐसे मामलों में अगर तुरंत शिकायत दर्ज करवाई जाए, तभी कुछ हो सकता है। वरना आरोपियों को पकड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।
जांच से पता चला है कि नरेश मल्होत्रा ने 4 अगस्त से 4 सितंबर के बीच तीन बैंकों में कुल 21 बार विजिट किया। उनकी तरफ से 21 आरटीजीएस ट्रांसफर किए गए। वह सभी पैसे 16 बैंक खातों में पहुंचे और कुल रकम 22.92 करोड़ तक जा पहुंची। जिन बैंकों में यह रकम जमा हुई, उनमें यस बैंक, इंडसइंड बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, यूनियन बैंक और एक्सिस बैंक शामिल थे। खास बात यह रही कि सभी बैंक देश के अलग-अलग राज्यों में थे। चाहे उत्तराखंड हो, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश या तमिलनाडु। लेकिन किसी भी बैंक खाता नई दिल्ली में नहीं था।
जॉइंट कमिश्नर के मुताबिक अब तक सिर्फ 2.67 करोड़ रुपए ही फ्रीज किए जा सके हैं। लड़ाई लंबी है और सारे चोरी हुए पैसों का वापस आना मुश्किल भी।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए नरेश मल्होत्रा ने अपना खौफनाक अनुभव साझा किया। उनके मुताबिक 1 अगस्त को उन्हें एक कॉल आया, जिसमें कहा गया कि उनकी पहचान टेरर फंडिंग के लिए इस्तेमाल की गई है। अब अगर उन्हें जमानत चाहिए तो वह केवल रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया या फिर सुप्रीम कोर्ट के जरिए मिल पाएगी। यहां तक कहा गया कि उन्हें कुछ पैसे देने होंगे, जो बाद में वापस कर दिए जाएंगे। मल्होत्रा के मुताबिक छह हफ्तों तक अपने हर छोटे खर्च के लिए उन्हें अनुमति लेनी पड़ती थी।
नरेश मल्होत्रा को शिकायत करने की हिम्मत तब आई, जब धोखेबाजों ने उनसे 5 करोड़ रुपए की मांग कर दी। आरोपियों ने कहा कि मल्होत्रा को पश्चिम बंगाल की एक निजी कंपनी में 5 करोड़ रुपए जमा करने होंगे। उसी समय मल्होत्रा का दिमाग घूम गया और उन्होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। तब उन्हें गिरफ्तारी की धमकी दी गई, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और सीधे जाकर शिकायत दर्ज कर दी।
इस मामले की जांच में यह भी सामने आया है कि सेंट्रल बैंक से 9.68 करोड़ रुपए, एचडीएफसी बैंक से 8.34 करोड़ रुपए और कोटक महिंद्रा बैंक से 4.9 करोड़ रुपए निकाले गए।
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