गौरव सैनी

बर्ष 1975 में कुल 700 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव क्षेत्र वाले केरल में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का असर नजर आ रहा है। राज्य का न केवल मैंग्रोव क्षेत्र घटकर सिर्फ 24 वर्ग किलोमीटर रह गया है, बल्कि केरल के तट पर, निचले इलाके में स्थित वाइपिन द्वीप की तटरेखा भी घटती जा रही है। बहरहाल, यह समस्या दूर करने के लिए ‘मैंग्रोव मैन’ कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

टीपी मुरुकेसन अपने घर की नमीयुक्त दीवारों पर नजरें टिकाए हाल ही में आई बाढ़ के मंजर को याद करते हुए बताते हैं कि अब ‘बाढ़ बार-बार आने लगी है और लंबे समय तक इसका प्रभाव रहता है।’ उन्होंने बताया कि हाल ही में आई बाढ़ इतनी भीषण थी कि उनके पौत्र के सीने तक पानी आ गया। ‘हर बार बाढ़ का पानी इतनी ऊंचाई तक आता है और हम उससे किसी तरह निपटते हैं।’

समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और गंभीर ज्वारीय बाढ़ के कारण मुरुकेसन के पड़ोस में कई परिवार ऊंचे इलाकों में जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। हालांकि बढ़ती उम्र के कारण अब मछली पकड़ना छोड़ चुके मछुआरे अपने घर और अपने समुदाय को बढ़ते जलस्तर के प्रभावों से बचाने के लिए काम कर रहे हैं। इन लोगों को ही स्थानीय लोग ‘‘मैंग्रोव मैन’’ कहते हैं। मुरुकेसन इनमें से एक हैं। उन्होंने अपने घर पर बढ़ते पानी के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए केरल राज्य के कोच्चि क्षेत्र में वाइपिन के किनारे और आसपास के इलाकों में पेड़ लगाना शुरू किया है।

विश्व मौसम संगठन के मुताबिक, समुद्र के जल में वैश्विक औसत वृद्धि 2013 से 2022 के बीच 4.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से हुई। यह स्थिति भारत, चीन, नीदरलैंड और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए बहुत ही खतरनाक है जिनकी लंबी तटरेखा है और जहां बड़ी आबादी रहती है। ‘नेशनल एयरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’’ (नासा) के अनुमानों के मुताबिक कोच्चि में वर्ष 2050 तक समुद्री जल स्तर में 0.22 मीटर की वृद्धि होगी और 2100 तक यह वृद्धि आधा मीटर से अधिक हो सकती है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और स्थानीय कारणों से पानी का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ने के कारण ज्वारीय बाढ़ आती है।

मुरुकेसन ने कहा ‘कई परिवार दूसरे इलाकों में जा चुके हैं।’ समुद्र तट से 50 मीटर के दायरे में रहने वाले मछुआरों के परिवारों को केरल सरकार की पुनर्वास योजना के तहत 10-10 लाख रुपए की वित्तीय मदद मिलती है। कुछ ही लोग इसके दायरे से बाहर हैं जिसका मतलब है कि वे सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। कुछ मछुआरों के परिवार मानसून के दौरान सरकार के सुरक्षा गृहों में चले जाते हैं और बाद में लौट आते हैं। कुछ ने लकड़ी के खंभों पर अपने मकान बनाए हैं जिन्हें ‘स्टिल्ट हाउस’ कहा जाता है। ये मकान ज्वारीय बाढ़ में टिके रहते हैं।

‘मैंग्रोव’ समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, ज्वार और तूफान की लहरों के खिलाफ प्राकृतिक तटीय सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, लेकिन समय के साथ राज्य में उनका वनाच्छादित क्षेत्र कम हो गया है। मुरुकेसन ने बताया कि वे सुंदर, घने मैंग्रोव (जो द्वीपों को समुद्र से अलग करते हैं) के बीच पले-बढ़े लेकिन अब केरल की वित्तीय राजधानी कहलाने वाले शहर कोच्चि में इसके कुछ ही अंश बचे हैं।

उन्होंने कहा, ‘मैंग्रोव हमारे घरों को बाढ़, समुद्री तटीय कटाव और तूफान से बचा सकते हैं, जो हमारे जीवन, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का अविभाज्य हिस्सा हुआ करते थे। केवल ये ही हमें बचा सकते हैं।’ मुरुकेसन ने बताया कि उन्होंने 1,00,000 से अधिक ‘मैंग्रोव’ लगाए हैं। वे एक दिन छोड़कर, अगले दिन पौधे लगाते हैं और ज्यादातर काम खुद करते हैं। चेन्नई स्थित एक गैर-सरकारी संगठन ‘एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ से पौधे मुहैया कराने में कुछ मदद मिलती है।

एक दिन के अंतराल पर उनका काम लगातार जारी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और केरल मत्स्य एवं महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय द्वारा पिछले साल जारी एक अध्ययन के अनुसार, एर्नाकुलम जिला जिसमें कोच्चि भी शामिल है, उसने मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र का करीब 42 फीसद हिस्सा खो दिया। इसका सबसे अधिक असर वाइपिन में दक्षिणी पुथुवाइपिन क्षेत्र में दिखा।

कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में उन्नत वायुमंडलीय रडार अनुसंधान केंद्र के निदेशक अभिलाष एस ने कहा कि वाइपिन में ज्वारीय बाढ़ का खतरा बेहद अधिक है। उन्होंने कहा, ‘समुद्र का जल स्तर बढ़ गया है और पेयजल की आपूर्ति को नुकसान पहुंचा है। समुद्री कटाव और ज्वार की स्थिति बिगड़ गई है। तटीय बाढ़ अब एक सामान्य घटना है।’ मुरुकेसन ने कहा, ‘हम समुद्र और ‘बैकवाटर’ के बीच फंसे हुए हैं। यह आपदा कुछ वर्षों में द्वीप निगल सकती है, लेकिन मैं कहीं नहीं जाने वाला। मेरा जन्म यहीं हुआ है और मैं यहीं अंतिम सांस लूंगा।’

केरल वन विभाग के अनुसार, 1975 के बाद से राज्य में मैंग्रोव क्षेत्र 700 वर्ग किलोमीटर से घटकर सिर्फ 24 वर्ग किलोमीटर रह गया है। केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य सचिव केके रामचंद्रन ने कहा, ‘तटीय सड़कों और राजमार्गों के निर्माण ने राज्य में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है। उन लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।’

मुरुकेसन की उनके प्रयासों के लिए व्यापक स्तर पर सराहना की गई और पुरस्कार दिए गए। उन्होंने कहा, ‘मुझे बीज इकट्ठा करने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। मेरी पत्नी नर्सरी में मेरी यथासंभव मदद करती है। उम्र के हिसाब से मैं थक गया हूं लेकिन मैं रुक नहीं सकता।’