आधुनिक विश्व में आतंकवाद केवल सुरक्षा संबंधी समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। हाल ही में जारी वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025 के मुताबिक आतंकवाद के खतरे में कमी नहीं आई, बल्कि इसके स्वरूप में बदलाव आया है। आतंकवादी गुट अब परंपरागत हथियारों की जगह डिजिटल तकनीक का अधिक उपयोग कर रहे हैं। इससे इनकी गतिविधियों को नियंत्रित करना और कठिन होता जा रहा है। वर्ष 2024 में आतंकवादी घटनाओं के कारण मरने वालों की संख्या में ग्यारह फीसद की वृद्धि हुई है। आतंकवाद से प्रभावित देशों की संख्या 58 से बढ़ कर 66 हो गई है, जो इस बात का संकेत है कि इस खतरे को समाप्त करने के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। सबसे अधिक प्रभावित देशों में बुर्किना फासो, पाकिस्तान, सीरिया, माली, नाइजीरिया, सोमालिया, इजराइल, अफगानिस्तान और कैमरून शामिल हैं।
आतंकवाद अब केवल संगठित समूहों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह अब साइबर आतंकवाद के रूप में भी सामने आ रहा है। पश्चिमी देशों में पिछले कुछ वर्षों में ‘लोन वुल्फ’ हमलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। ऐसे हमले विशेष रूप से यूरोप और अमेरिका में अधिक हुए, जहां अकेला व्यक्ति (जो किसी न किसी कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित होता है) सामूहिक हिंसा या आत्मघाती हमलों को अंजाम देता है। आतंकवाद का एक नया स्वरूप साइबर आतंकवाद के रूप में भी सामने आया है। आतंकवादी अब साइबर हमलों का उपयोग न केवल सरकारी ढांचों को निशाना बनाने के लिए, बल्कि दुष्प्रचार फैलाने और धन जुटाने के लिए भी कर रहे हैं। ‘क्रिप्टोकरंसी’ का उपयोग बढ़ने से आतंकवादी गुटों के वित्तीय लेन-देन का पता लगाना पेचीदा होता जा रहा है।
अफ्रीका में आतंकी संगठनों की सफलता के पीछे मुख्य कारण
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025 के अनुसार, विशेष रूप से बुर्किना फासो में आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। अफ्रीका में आतंकी संगठनों की सफलता के पीछे मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता, कमजोर सुरक्षा व्यवस्था और सामाजिक असमानता हैं। अल-कायदा और आइएस के क्षेत्रीय सहयोगी संगठनों ने इन स्थितियों का लाभ उठाते हुए अपने प्रभाव का विस्तार किया है। मध्य पूर्व में यह एक बड़ा खतरा बना हुआ है। वर्ष 2024 में आइएस ने 22 देशों में 1805 लोगों की हत्या की और इनका प्रभाव विशेष रूप से सीरिया और कांगो में अधिक देखा गया। आइएस (के) ने भी अपनी गतिविधियों का विस्तार किया है और ईरान तथा रूस में बड़े हमले किए हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान आतंकवादी हिंसा के सबसे अधिक प्रभावित देश बने हुए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भी आइएस और अन्य आतंकवादी गुट सक्रिय हैं, जो इस क्षेत्र में स्थिरता स्थापित होने में बड़ी बाधा बन रहे हैं। पाकिस्तान में भी आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2025 में भारत को चौदहवें स्थान पर रखा गया है। हालांकि, भारत की स्थिति पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों की तुलना में बेहतर है, फिर भी यह आतंकवाद से पूरी तरह मुक्त नहीं है। सीमा-पार आतंकवाद भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो मुख्य रूप से पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के जरिए संचालित होता है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठन वर्षों से जम्मू-कश्मीर में सक्रिय हैं। हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के खिलाफ आपरेशन ‘आलआउट’ जैसे अभियानों से कुछ हद तक सफलता मिली है, लेकिन पाकिस्तान समर्थित घुसपैठ और कट्टरपंथी गतिविधियां अब भी जारी हैं। ड्रोन तकनीक और साइबर प्रचार के माध्यम से आतंकी संगठनों की पहुंच और रणनीति अधिक उन्नत हो गई है, जिससे नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं।
पूर्वोत्तर भारत में कुछ राज्यों में अलगाववादी और उग्रवादी समूह अब भी सक्रिय
भारत में नक्सली आतंकवाद मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओड़ीशा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में है। यहां आतंकियों की गतिविधियां ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती हैं, जहां वे स्थानीय असंतोष, गरीबी और प्रशासनिक उपेक्षा का लाभ उठाते हैं। हालांकि, सुरक्षा बलों की कार्रवाई और विकास योजनाओं के कारण नक्सली प्रभाव में कमी आई है, लेकिन अब भी यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती है। पूर्वोत्तर भारत में कुछ राज्यों में अलगाववादी और उग्रवादी समूह अब भी सक्रिय हैं। भारत के लिए आतंकवाद की कई चुनौतियां हैं। आधुनिक तकनीकों के उपयोग से आतंकी संगठन डार्क वेब, क्रिप्टोकरंसी और कृत्रिम मेधा का लाभ उठा रहे हैं, जिससे उनकी गतिविधियों पर नजर रखना कठिन हो गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से युवा पीढ़ी को कट्टरपंथी विचारधारा से जोड़ने की कोशिशें बढ़ी हैं। भारत में आतंकवाद निरोधक कानूनों को समय-समय पर संशोधित और सख्त किया गया है, ताकि आतंकवादी संगठनों और उनके समर्थकों पर प्रभावी कार्रवाई की जा सके।
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राष्ट्रीय जांच एजंसी आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच में अग्रणी भूमिका निभाती है। इसकी जांच प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसे अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं। खुफिया ब्यूरो और ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रा) आतंकवाद विरोधी खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने में जुटे हैं। आतंकवादियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने और समय रहते उन्हें रोकने के लिए ये एजंसियां उच्च स्तरीय समन्वय के साथ काम कर रही हैं। आधुनिक तकनीकों के माध्यम से आतंकवाद से निपटने के लिए भारत ने साइबर सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित निगरानी प्रणाली विकसित की गई है, जो संदिग्ध आनलाइन गतिविधियों और आतंकी प्रचार सामग्री की पहचान करने में सहायक होती है। ड्रोन और उपग्रह से आतंकवादियों पर लगातार नजर रखी जा रही है। आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। अमेरिका, फ्रांस और इजराइल के साथ आतंकवाद निरोधक रणनीतियों पर सहयोग बढ़ाया गया है। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों पर दबाव बनाने के लिए भारत ने कूटनीतिक प्रयास तेज किए हैं।
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में प्रभावी साबित होगा तकनीक का उपयोग
आतंकवाद से निपटने के लिए केवल सैन्य अभियानों और सख्त कानूनों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए बहुआयामी रणनीति की जरूरत है। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बेरोजगारी, गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याएं लोगों को कट्टरपंथ की ओर धकेल सकती हैं। सरकारों को इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं लागू करनी चाहिए, ताकि लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके।
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आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तकनीक का उपयोग प्रभावी साबित होगा। कृत्रिम मेधा और डेटा विश्लेषण का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों की निगरानी और उन्हें रोकने के लिए किया जाना चाहिए। साइबर आतंकवाद पर काबू पाने के लिए सरकारों को सोशल मीडिया और डिजिटल मंचों के साथ मिल कर काम करना होगा। अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत करने की जरूरत है, क्योंकि आतंकवादी संगठन सीमाओं से परे काम करते हैं। इसके लिए खुफिया सूचना का साझाकरण, आतंकवादी वित्त पोषण पर नियंत्रण और संयुक्त अभियानों को बढ़ावा देना होगा। आतंकवाद के मूल कारणों को समाप्त करने के लिए कट्टरपंथ को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। युवाओं में जागरूकता अभियान के साथ उनके पुनर्वास कार्यक्रमों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे आतंकवाद के वैचारिक आधार को कमजोर किया जा सकेगा और दीर्घकालिक शांति स्थापित करने में मदद मिलेगी।