पहले सिर्फ शक था मुझे, लेकिन इस न्याय यात्रा के बाद यकीन हो गया है कि नरेंद्र मोदी की मदद सबसे ज्यादा राहुल गांधी कर रहे हैं। यकीन तब हुआ जब कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और गांधी परिवार के युवराज ने एक पत्रकार के सवाल पर भड़क कर जवाब में कहा, ‘आपका नाम क्या है? क्या आप ओबीसी हैं?’ पत्रकार ने अपना नाम जब ‘यादव’ बताया तो राहुल और भी भड़क गए और पूछने लगे कि क्या आपके मालिक ओबीसी हैं? निहायत बदतमीजी से ये सवाल किए गए थे, मालूम नहीं क्यों, जैसे कि सिर्फ ओबीसी पत्रकार उनसे बात कर सकते हैं। इस वीडियो को सोशल मीडिया पर राहुल गांधी ने ख़ुद डाला।

यात्रा के सारे वीडियो इंस्टाग्राम पर राहुल गांधी खुद डालते हैं। जाहिर है कि उनको इन पर गर्व है और यकीन भी कि इस तरह भड़कने से उनकी बातों में जोश आता है, जिससे उनको राजनीतिक लाभ मिलने वाला है आने वाले चुनावों में। मैंने कई वीडियो देखे हैं राहुलजी के। इन सबका संदेश यही है कि उन्होंने अपने राजनीति का आधार बनाया है जातिवाद।

ऐसा जातिवाद जो ऊंची जातियों के खिलाफ एक अजीब किस्म की मुहिम बन गई है, जो न कांग्रेस को लाभ देने वाली है, न देश को। राम मंदिर पर बात की राहुल गांधी ने तो इस तरह- ‘आपने देखा कि राम मंदिर में जब प्राण प्रतिष्ठा के लिए लोग पहुंचे तो आपको कौन दिखा? अमिताभ बच्चन दिखे, ऐश्वर्या राय दिखीं न? लेकिन कोई ओबीसी दिखे? कोई दलित दिखे?’ बाद में जब किसी ने उनको बताया कि ऐश्वर्या राय वहां थी नहीं तो उन्होंने कैटरीना कैफ का नाम लेना शुरू किया।

इस तरह की बातें करके राहुल साबित करना चाह रहे हैं कि देश की तिहत्तर फीसद आबादी निचली कही जाने वाली जातियों की है, तो उनका देश के धन पर और सत्ता के ऊंचे ओहदों पर अधिक हक होना चाहिए। बात ठीक है कुछ हद तक, लेकिन इसके बारे में थोड़ा ध्यान से सोचा जाए तो दिखने लगेगा किसी भी समझदार आदमी को कि इस समस्या का समाधान कुछ और है। समाधान है बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना उन बच्चों के लिए, जो ऐसी जातियों से आते हैं, जिनके पूर्वज सदियों से शिक्षा से दूर रखे गए हैं।

ऐसा सुझाव देते अगर गांधी परिवार के वारिस तो उनकी बातों में कुछ हद तक दम होता, लेकिन उनका सुझाव यह नहीं है। उनका सुझाव, उनका संदेश यही है कि ‘हमारी सरकार’ बनाओ और हम अंबानी-अदानी का पैसा लेकर आपको बांट देंगे। ऐसा करना असंभव है, इसलिए कि इन उद्योगपतियों ने अपना धन अपनी मेहनत से बनाया है, न कि किसी सरकारी खजाने को लूटकर। क्या राहुल गांधी इस साधारण बात को समझ नहीं सकते हैं?

क्या जानते नहीं हैं कि उनकी जब बारी आएगी- अगर कभी आएगी- तो उनको इन लोगों के पास जाना पड़ेगा घुटनों के बल माफी मांगने, क्योंकि ये लोग अगर धन न पैदा करें देश के लिए तो बड़ी-बड़ी सरकारी योजनाएं बंद हो जाएंगी। ये लोग उन मुट्ठी भर भारतवासियों में हैं, जो इतना पैसा कमाते हैं कि करोड़ों का टैक्स देते हैं देश के शासकों को।

ये वही लोग हैं जो अगर कंगाल होते तो इसका असर देश की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता, इसलिए कि न राजनेता धन पैदा करते हैं और न आला अधिकारी। राहुल गांधी का मानना है कि धन पैदा करते हैं सिर्फ किसान और मजदूर। जरूर पैदा करते हैं, लेकिन किसानों के लिए कर देना माफ है और मजदूर बेचारे अक्सर इतना कमाते ही नहीं हैं कि कर देने लायक हो सकें।

राहुलजी के परदादा और देश के पहले प्रधानमंत्री ने भी कभी सोचा था कि भारत सरकार धन पैदा कर सकेगी बड़े बड़े उद्योग लगा कर और जो मुनाफा आएगा इन उद्योगों से उसको लगाया जाएगा आम लोगों की भलाई पर। उनको प्रेरणा मिली थी सोवियत संघ से, लेकिन यह देखे बिना कि सोवियत संघ का आर्थिक हाल क्या है। नतीजा यह कि सोवियत संघ भी अपनी आर्थिक गलतियों के बोझ तले टूट गया और भारत दशकों तक नेहरूजी की आर्थिक नीतियों के कारण कंगाल रहा। इतना कि विदेश में जब हम भारतीय जाते थे तो लोग हम पर ताने कसते कहते थे- ‘आपका देश भूखे-नंगों का देश है’।

आर्थिक परिवर्तन का छोटा-सा दीपक तब जला जब नरसिंंह राव ने लाइसेंस राज समाप्त किया और निजी उद्योग की बेड़ियां तोड़ीं। उस दीपक को मशाल के रूप में बदलने का काम उन प्रधानमंत्रियों ने किया है, जिन्होंने निजी क्षेत्र में धन पैदा करने वालों का सम्मान करके उनको निवेश के मौके दिए।

जब राहुल गांधी देश में उनके धन को खैरात में बांटने की बातें करते हैं तो शायद जानते नहीं हैं कि ऐसा हमने करके देखा है पहले भी। जब उनके परिवार से आया करते थे सारे प्रधानमंत्री। हमने उनकी आर्थिक सोच का परिणाम भी देखा है। खैरात बांटना जब देश की प्रथम आर्थिक नीति थी, तो गुरबत ही बांटने का काम हुआ।

ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी की ‘गारंटी’ पर हम पूरा विश्वास कर सकते हैं। बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है देश में। अभी भी ग्रामीण भारत में अच्छे सरकारी स्कूल और अस्पताल मुश्किल से मिलते हैं। अभी भी ग्रामीण भारत में खुले में शौच करने की गंदी आदत पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है और अभी भी गरीबी इतनी है देश में कि हमारे बच्चे मरते हैं ऐसी बीमारियों के कारण, जो गंदगी से पैदा होती हैं।

मगर इन सब बातों के बावजूद यह भी सच है कि मोदी सपना दिखा रहे हैं विकसित भारत का और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी सपना दिखा रहे हैं वही पुराने दौर का, जिससे हम गुजर कर निकले हैं और जिससे निकलने के बाद ही थोड़ी बहुत समृद्धि देखी है भारतवासियों ने।