इस सप्ताह बात करना चाहती हूं उन चीजों की, जिनको हम मीडिया वाले मामूली और छोटी समझ कर अक्सर इनके बारे में जिक्र तक नहीं करते हैं। इन ‘मामूली’ चीजों की मेरी फेहरिस्त में आती है स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरतें। ऐसी चीजें मुझे याद आई हैं आज इसलिए कि पिछले पांच दिन मैंने श्रीलंका में बिताए हैं एक अरसे बाद। जब श्रीलंका में अशांति और अराजकता के दिन थे तो कई बार जाना होता था।

एक ब्रिटिश अखबार के लिए लिखती थी उन दिनों और मेरे संपादक को तमिलों और सिंहली लोगों के बीच के झगड़े में खास रुचि थी। इस बार गई थी पत्रकारिता करने नहीं, लेकिन कोलंबो से अनुराधापुरा और वहां से कैंडी जाना हुआ सड़क के रास्ते। इस सफर में छोटे शहरों और गांवों की स्वच्छता देख कर हैरान रह गई। इसलिए इस लेख की शुरुआत कर रही हूं श्रीलंका से। दो दिनों की इस यात्रा में कहीं पर भी मैंने न गंदगी देखी, न सड़ते कूड़े के ढेर और न ही इस तरह के अन्य नजारे, जो भारत में आम देखने को मिलते हैं।

श्रीलंका की इस यात्रा में मैंने प्राचीन मंदिर देखे, पहाड़ी शहर देखे, जंगल देखे, झीलें देखीं और इन सारी जगहों से गुजरते वक्त मैंने ध्यान दिया स्वच्छता पर, इसलिए कि अपने भारत महान में जब इस तरह की यात्राओं पर निकलती हूं तो ऐसे नजारे दिखते हैं, जो मुझे शर्मिंदा कर देते हैं।

महानगरों में कुछ हद तक नगर पालिकाओं ने सफाई करने का काम किया है, लेकिन हमारे कस्बों और गांवों की सीमाओं पर आपको हर जगह दिखेंगे सड़ते कचरे के ढेर, जिनके पास में होते हैं स्कूल, अस्पताल, रेस्तरां और बाजार। बरसात के मौसम में यह कचरा इन जगहों के अंदर बह जाता है अपने साथ बीमारियां लेकर। हमारे देश के अधिकतर बच्चे जब पांच बरस से कम उम्र में मर जाते हैं तो कारण होता है कोई न कोई ऐसी बीमारी, जो गंदगी से पैदा हुई है।

दशकों तक हमारे शासकों ने इस गंदगी को अनदेखा किया है यह कहकर कि हमारा देश गरीब है, इसलिए ऐसा तो होना ही है। श्रीलंका हमसे कहीं ज्यादा गरीब देश है, लेकिन सीख चुका है कि किस तरह कचरे के साथ निपटना चाहिए। एक छोटे, गरीब बाजार से जब हम गुजर रहे थे तो मैंने पूछा किसी से कि श्रीलंका की सफाई का राज क्या है। तो मालूम हुआ कि हर नगरपालिका और पंचायत की जिम्मेवारी है प्लास्टिक कचरे को अलग करके उसको पुनर्चक्रित करवाना। हर आम नागरिक की जिम्मेवारी है बाकी गीले कचरे से खाद बनाना। सबसे बड़ा कारण, लेकिन यह है कि श्रीलंका के शासकों ने स्वच्छता पर ध्यान दिया है।

भारत में नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने लालकिले की प्राचीर से स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की थी 2014 में। मोदी से पहले अगर किसी राजनेता ने भारत की गंदगी का जिक्र किया था, तो वे गांधीजी थे। स्वतंत्रता के बाद जितने भी लोगों ने राज किया, सबने हमारे देश की सामाजिक समस्याओं को अनदेखा किया यह कहकर कि गरीब देशों में ऐसा होता ही है।

श्रीलंका गरीब देश है, लेकिन शिक्षा पर इतना ध्यान दिया है यहां के शासकों ने कि वहां के नब्बे फीसद से ज्यादा लोग शिक्षित हैं। भारत में कहने को तो सत्तर फीसद लोग अब साक्षर हैं, लेकिन इस आंकड़े पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि आप अगर अपना नाम लिख सकते हैं तो आपको साक्षर माना जाता है। गैर-सरकारी संस्थाएं जब असलियत मालूम करने निकलती हैं तो पाती हैं कि हमारे बच्चे स्कूल की पूरी पढ़ाई करने के बाद भी सिर्फ साक्षर होते हैं, शिक्षित नहीं।

मैं जब ग्रामीण स्कूलों का हाल देखती हूं और ग्रामीण अस्पतालों का, तो एक गहरी मायूसी महसूस करती हूं। इनमें ‘मोदी की गारंटी’ के बावजूद पिछले दशक में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है उन राज्यों में भी, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं। कुछ इसलिए कि हम मीडिया वाले इन चीजों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन असली समस्या है कि इन चीजों की तरफ हमारे शासकों की नजरें जाती ही नहीं हैं। एक बार जब चुनाव जीतकर संसद में पहुंच जाते हैं या विधानसभा में, तो पहला काम यही करते हैं कि अपने बच्चों को किसी आलीशान निजी स्कूल में भेज देते हैं।

इसलिए अब जब मोदी का दूसरा दौर समाप्त होने वाला है और उनकी ‘गारंटी’ है कि तीसरी बार भी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं तो मेरी उनसे प्रार्थना है कि अपने तीसरे दौर में आप उन चीजों पर अपना पूरा ध्यान लगाएं, जिनको हम पत्रकार भी मामूली मानते हैं। विकसित भारत की आजकल बहुत बातें होती हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेता याद दिलाना नहीं भूलते हैं कि मोदी के राज में कितने हाईवे बने हैं और कितने हवाई अड्डे। बात उनकी ठीक तो है, लेकिन भूल गए हैं कि जब तक हम अपने इंसानी धन में निवेश नहीं करते हैं, तब तक विकसित भारत सिर्फ एक सपना रह जाएगा।

दावा यह भी करते हैं हमारे आला नेता कि भारत को तो आगे बढ़ना ही है, क्योंकि दुनिया की सबसे युवा आबादी हमारे देश में है। बात यह भी सही है, लेकिन अब ध्यान देना पड़ेगा कि इस आबादी में कितने शिक्षित और स्वस्थ लोग हैं और कितने कमजोर सिर्फ इसलिए कि उनको असली आधुनिक शिक्षा से वंचित रखा गया है और वे पले हैं मलिन बस्तियों में, जहां सेहतमंद होना तकरीबन असंभव है। सच पूछिए तो श्रीलंका ने मुझे शर्मिंदा किया है कई तरह से। उनके मंदिर और उनकी प्राचीन इमारतों का हाल भी हमसे कहीं ज्यादा अच्छा है, लेकिन इस लेख में उधर तक जाने की गुंजाइश नहीं है, वरना जाती जरूर।