जबसे प्रधानमंत्री ने जी20 शिखर सम्मेलन को सफलता से समाप्त करके एलान किया था कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जाएगा तबसे राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जा रही थीं कि इस सत्र में कौन-सी विशेष चीज होने वाली है। हम पत्रकारों में सहमति थी कि इस विशेष सत्र में बहुत बड़े परिवर्तन का कोई एलान होने वाला है जैसे कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का कानून या कोई ऐसा अहम बदलाव जिसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। अब मालूम हुआ है कि इस विशेष सत्र को बुलाया गया था महिला आरक्षण विधेयक पारित करने के लिए। निजी तौर पर मुझे ऐसा लगा कि ऐसा करने के लिए विशेष सत्र की जरूरत नहीं थी।
सोनिया गांधी ने कहा- मेरे ‘जीवनसाथी’ लाना चाह रहे थे लेकिन ला नहीं पाए
महिला आरक्षण कानून की चर्चा बरसों से होती आ रही है। सोनिया गांधी ने जब चर्चा में भाग लिया तो याद दिलाया कि इस कानून को मेरे ‘जीवनसाथी’ लाना चाह रहे थे लेकिन ला नहीं पाए। आगे उन्होंने और उनके बेटे ने एक आवाज में कहा कि पिछड़ी जातियों के लिए जब तक खास प्रावधान नहीं रखा जाता है तब तक यह कानून अधूरा रहेगा।
महिलाओं के लिए संसद में 33 फीसद सीटें आरक्षित अगले आम चुनाव के पहले तो नहीं होने वाली हैं, लेकिन नई लोकसभा जब चुनकर आएगी, तो संभव है कि उसमें महिलाओं के लिए आरक्षण आ जाएगा।
इस कानून को इतना समर्थन मिला है राजनीतिक दलों का और महिलाओं का भी कि जो बात अब कहने वाली हूं ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं आएगी, लेकिन मेरा मानना है कि इसको कहना पड़ेगा ताकि हम सब इस आरक्षण का मतलब समझ पाएं। पंचायतों में तो महिलाओं के लिए आरक्षण दशकों से है सो मैं जब भी देहाती दौरों पर निकलती हूं और किसी गांव में महिला सरपंच होती हैं तो हमेशा उनसे मिलती हूं। अक्सर मैंने पाया है कि इन महिलाओं की सरपंची सिर्फ नाम के वास्ते है।
महिला सरपंचों के पतिदेव ज्यादातर गांव चलाने का काम संभालते
इन नाम के वास्ते महिला सरपंचों के कारण प्रधान पति नाम का एक पद भी कई जगह सुनने में आता है। यानी महिला सरपंचों के पतिदेव ज्यादातर गांव चलाने का काम संभालते हैं अपनी पत्नियों के नाम में। इनसे जब भी मैंने पूछा है कि अपनी बीवियों को वो क्यों नहीं काम करने देते हैं तो जवाब मिलता है ये- ‘जी पढ़ी-लिखी नहीं हैं तो समझती नहीं है कि क्या करना है इस पद पर चुने जाने के बाद’।
देखा ये भी है मैंने कि जिन महिलाओं को गांव का प्रधान बनाया जाता है वो होती हैं किसी मर्द सरपंच के रिश्तेदारों में से। ऐसा कहने के बाद लेकिन ये भी कहना जरूरी समझती हूं कि महाराष्ट्र के सांगली जिले में मुझे एक दलित महिला सरपंच मिली थीं बहुत साल पहले जिसने गांव में स्वच्छता अभियान इतनी सफलता से चलाया था कि नालियों में साफ पानी बहने लगा था, कचरे का नामो-निशान नहीं था और बीमारियों को दूर भगा दिया गया था।
उसका नाम था छाया कांबले और इतना कमाल करके दिखाया था इस औरत ने कि मैंने उसपर एक पूरा टीवी प्रोग्राम किया था कोई बीस साल पहले। सो लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण मिलने के बाद अगर छाया कांबले जैसी औरतें पहुंचने लगती हैं तो इस नए कानून से भारत देश की शक्ल बदल सकती है। लेकिन मालूम नहीं क्यों मुझे अभी से लगने लगा है कि ऐसा होने वाला है नहीं और वैसी ही औरतें पहुंचेंगी संसद में जो किसी की बीवी, बेटी या किसी बहन होने के नाते पहुंची हैं।
इनके आने से ना तो देश की महिलाओं का भला होगा और ना देश की राजनीति का। मेरा मानना है कि अपने देश में अगर एक वर्ग है जिसका हाल बाकी वर्गों से कहीं बदतर है तो वो वर्ग है भारत की औरतों का।
देहातों में बेटी के पैदा होने पर न तो खुशियां मनाई जाती हैं और न ही उसकी वो जगह बनती है जो उसके भाइयों की होती है। कानूनी तौर पर उसको बराबर के अधिकार बहुत पहले दिए गए हैं लेकिन इन अधिकारों के मिलने के बाद भी न उसको जमीन-जायदाद में बराबर का हक मिलता है और न ही उसकी पढ़ाई पर वो ध्यान दिया जाता है जो उसके भाइयों की किस्मत में होता है।
थोड़ा बहुत अगर पढ़-लिख लेती है तो गनीमत। घर की चारदिवारी के बाहर नौकरी कर लेती है तो गनीमत। अक्सर भारत की बेटियों को बचपन से ही घर सभालने का काम सौंपा जाता है। अक्सर उनकी किस्मत में यही होता है कि थोड़ी सी बड़ी हो जाती हैं तो उनकी शादी कर दी जाती है। अक्सर उसकी मर्जी के बिना।
क्या संसद में ये आरक्षण मिलने के बाद भारत की औरतों का भविष्य रोशन हो जाएगा? यकीन तो है नहीं लेकिन उम्मीद दिल से करती हूं कि निकट भविष्य में इस देश की महिलाओं का जीवन बिल्कुल बदल जाएगा। विकसित भारत का जो सपना है प्रधानमंत्री का उसको साकार करने के लिए ऐसा होना बहुत जरूरी है।
मोदी बहुत खुशी जताते हैं जब उनको विज्ञान या सेना जैसे क्षेत्रों में महिलाएं दिखती हैं सिर्फ इसलिए कि इन क्षेत्रों में इतनी कम महिलाओं को आने दिया गया है। उनको इन क्षेत्रों से बाहर रखने वाले और कोई नहीं उनके अपने परिजन होते हैं जो अभी तक उस दकियानूसी जमाने में अटक कर रह गए हैं जिसमें राज करते हैं केवल पुरुष।
इस आरक्षण से हमारा पुरुष प्रधान देश अगर बदल जाता है तो बहुत बड़ी बात होगी। इसलिए चाहे जैसे भी हो इस कानून के पारित होने के बाद इसको अमल में जल्दी लाया जाना चाहिए। साथ ही, आशा करती हूं कि संसद के दरवाजे उन महिलाओं के लिए ही खुलेंगे जो वास्तव में संसद में पहुंचने लायक हों।