लोकसभा चुनावों की तैयारियां दोनों तरफ से होने लगी हैं। इधर पटना में मिल-बैठ कर विपक्ष के नेताओं ने तय किया कि जहां तक हो सके, वे एक-दूसरे के खिलाफ नहीं लड़ेंगे। उधर प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा से लौटे और इतनी जल्दी पहुंचे भोपाल कि ऐसा लगा कि आराम किए बिना ही निकल पड़े अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करने।
फर्क यह था कि विपक्ष की बैठक में साथ रहने का वादा सुनाई दिया, लेकिन किसी भी विपक्षी राजनेता से अभी तक हम यह नहीं जान पाए हैं कि उनके मुद्दे क्या हैं। उनके पास कौन-सी राज की बातें हैं, जिनको लेकर जाएंगे मैदान में, जो इतनी खास हैं कि मतदाता भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर उनके पास चले आएंगे। मोदी का विरोध उनके लिए विशेष मुद्दा हो सकता है, लेकिन मतदाताओं के लिए नहीं है। इस देश के मतदाताओं ने मोदी को दो बार पूर्ण बहुमत से प्रधानमंत्री बनाया, इसलिए कि उनको लगा कि मोदी के आने से उनके जीवन में परिवर्तन आया है।
कई राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मोदी की 2019 वाली जीत सिर्फ इसलिए हुई, क्योंकि वे हिंदू हृदय सम्राट बन गए थे। मेरा ऐसा मानना नहीं है। याद है मुझे ग्रामीण वाराणसी का दौरा, जो मैंने किया था मतदान के कुछ हफ्ते पहले। याद हैं मुझे मोदी के एक ‘माडल’ गांव के नजारे। गांव में दाखिल होते ही दिखी एक पक्की सड़क, जिसके किनारे थे दो नए, आधुनिक बैंक और एक नया स्कूल लड़कियों के लिए।
अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि विपक्ष का मुद्दा क्या है
गांव के अंदर गई लोगों से बातचीत करने, तो उन्होंने ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ कह कर चुनावी हवा का रुख बताया। मैंने जब पूछा कि क्यों ऐसा है, तो उन्होंने साफ कहा कि उनकी आंखों के सामने गांव का हाल बदला है। अब न बिजली-पानी का अभाव रहा और न ही टूटी, पुरानी सड़कें। शिकायत उनकी थी सिर्फ इतनी कि बेरोजगारी कम नहीं हुई है। मंदिर-मस्जिद की बातें तक नहीं उठाईं।
कहने का मतलब है कि मोदी इस दौड़ में पहले से काफी आगे हैं और भोपाल वाले भाषण में उन्होंने स्पष्ट किया कि विकास की यात्रा उनके तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद और तेज होने वाली है। यह जरूर है कि उन्होंने यह भी कहा कि एक परिवार में दो कानून नहीं हो सकते और समान नागरिक संहिता को लेकर हमारे ‘सेक्युलरवादी’ पंडितों और राजनेताओं ने हल्ला बोलना शुरू कर दिया है कि यह कानून सीधा वार करेगा मुसलमानों के तौर-तरीकों पर।
यह कारतूस कमजोर हो गया है, क्योंकि इसको चलाया गया था जब तीन तलाक की प्रथा खत्म कर दी गई थी, जब नागरिकता कानून में संशोधन लाया गया था और जब अनुच्छेद 370 खत्म कर कश्मीर का विशेष दर्जा हटा दिया गया था।
विपक्ष की बात आई है, तो जरूरी है कहना कि जब मोदी परिवारवाद का मुद्दा उठाते हैं, चोट पहुंचती है तकरीबन हर विपक्षी राजनेता पर। इसलिए कि जनता अब बेवकूफ नहीं रही है, सो जानते हैं मतदाता कि मोदी सच बोल रहे हैं, जब कहते हैं कि कांग्रेस को वोट देने का मतलब है राहुल और प्रियंका गांधी का भला करना। बिल्कुल यही हाल है सारे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का, जिनको चला रहे हैं उत्तर भारत में मुलायम सिंह यादव और शरद पवार के वारिस, फारूक अब्दुल्ला और प्रकाश सिंह बादल के वारिस और दक्षिण राज्यों में भी यही हाल है।
विपक्ष की तरफ से असली चुनौती तब आएगी, जब इकट्ठा होने के अलावा उनकी तरफ से कोई ऐसी रणनीति दिखने लगेगी, जो मतदाता देख कर जान जाएं कि वास्तव में देश ज्यादा विकसित होने वाला है मोदी को हराने के बाद। अफसोस कि एक पूरा दशक विपक्ष में रहने के बाद विपक्ष की तरफ से न कोई नया आर्थिक सपना देखने को मिलता है, और न ही कोई नई राजनीतिक सोच। आज भी वे मतदाताओं के पास लेकर जाएंगे वही पुरानी बातें, वही पुरानी सोच, जिसने उनको दो बार हराया है लोकसभा के चुनावों में।
भूल रहे हैं विपक्ष के राजनेता कि अबकी बार मोदी ज्यादा शान से आएंगे मैदान-ए-जंग में अपनी हाल की विदेश यात्रा को मुद्दा बनाकर। मैंने पाया है कि भारत के मतदाताओं को बहुत अच्छा लगता है जब देश के प्रधानमंत्री का सम्मान होते दिखता है दुनिया के बड़े राजनेताओं द्वारा। एक जमाना था जब जवाहरलाल नेहरू के वारिस चमकते सितारे थे दुनिया की नजरों में। अब अगर भारत का एक ऐसा राजनेता है, जिसको उनकी जगह पर देखा जा सकता है, तो उसका नाम है नरेंद्र मोदी।
माना कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद उनकी छवि एक असली राजनेता की बन गई है, लेकिन उसके बाद लगता है कि वे खुद समझ नहीं पाए हैं कि उनकी अगली चाल क्या होनी चाहिए। नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान के नारे से कांग्रेस को नहीं दिला सकेंगे पूर्ण बहुमत लोकसभा में, क्योंकि यह फिल्मी संवाद ज्यादा और राजनीतिक विचार कम दिखता है। उस मोहब्बत की दुकान से जब आम लोगों को लाभ होता दिखेगा, तब बात बनेगी।
कर्नाटक में कांग्रेस जीती है इस बार, तो इसलिए कि रेवड़ियां बांटने की लंबी फेहरिस्त लेकर गई थी कांग्रेस पार्टी मतदाताओं के पास। इसलिए भी कि भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका था, इतना कि सरकारी ठेकेदार खुल कर कह रहे थे कि उनको हर ठेके से चालीस फीसद पैसा राजनेताओं को देना पड़ रहा था।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत शानदार हुई थी, इसमें दो राय नहीं, लेकिन इस साल अगर मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस जीत कर दिखाएगी, तब राहुल गांधी मोदी के लिए मुसीबत बन सकते हैं। फिलहाल दिल्ली दूर है।