घटना इतनी घिनौनी, इतनी शर्मनाक थी कि मणिपुर पर आखिरकार प्रधानमंत्री को पिछले सप्ताह बोलना पड़ा। मणिपुर में उनकी ‘डबल इंजन’ सरकार है, सो समझना मुश्किल है कि अभी तक प्रधानमंत्री क्यों चुप्पी साधे हुए थे। मणिपुर से कुकी महिलाएं दिल्ली पहुंची थीं हिंसा शुरू होने के कुछ दिन बाद। गृहमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन किया था। पत्रकारों के सवाल पूछने पर कई महिलाओं ने आंसू बहाते हुए कहा था कि जो हो रहा है उनके साथ, उसको बयान करना भी कठिन है। उनकी किसी ने न सुनी। शायद इसलिए कि देश के आला नेता चुनावी चक्कर में उलझे थे उस समय। जिस दर्दनाक घटना का वीडियो अब वायरल हुआ है, उन्हीं दिनों घटी थी।

घटना यों है: कांकपोक्पी जिले के एक गांव से दो औरतों का अपहरण मैतेई युवकों की एक भीड़ ने करके उनको नंगा घुमाया और फिर जो छोटी थी इन दोनों में, उसका सामूहिक बलात्कार किया दिन दहाड़े। खबरों के मुताबिक उसके पिता को पहले ही जान से मार दिया गया था और जब उसके भाई ने अपनी बहन की इज्जत बचाने की कोशिश की, तो उसको भी जान से मार दिया गया। इस घटना ने इतना शर्मसार किया है हम सबको कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसकी निंदा कड़े शब्दों में की है और प्रधानमंत्री बोलने पर मजबूर हुए हैं।

जब भी कोई घटना होती है तो पीएम मुंह बंद ही रखते हैं

मणिपुर की हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री की तीन महीनों से चुप्पी उनके खिलाफ गई है। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने निर्णय लिया था चुप रहने का, जब भी कोई इस तरह की घटना घटती है। इसके बारे में मैं इसलिए जानती हूं कि जब पहली ‘लिंचिंग’ हुई थी 2016 में, मैं उनसे मिलने गई थी अपनी नई किताब उनको देने और मैंने पूछा था कि मोहम्मद अखलाक की गोरक्षकों द्वारा ‘लिंचिंग’ की निंदा क्यों नहीं करते हैं, तो उनका जवाब था कि कुछ न कुछ रोज होता है इस देश में, तो उनको निंदा करने से किसी और काम के लिए फुरसत ही नहीं मिलेगी।

मुझे उनका वह जवाब तब भी अजीब लगा था और आज भी अजीब लगता है। दुनिया के जो राजनेता महान माने जाते हैं, उनका पहला उसूल होता है कि उस समय चुप नहीं रहना चाहिए जब देश के किसी भी हिस्से में लोगों को हिंसा या नफरत के कारण बेमौत मारा जाता है। हमारे प्रधानमंत्री ने उल्टा करके अपना नुकसान किया है और देश का भी।

मणिपुर में हिंसा दो महीनों से ज्यादा से चलती आ रही है। जिस घटना का वीडियो अब वायरल हुआ है, वह हिंसा शुरू होने के पहले अड़तालीस घंटों में घटी थी। हो सकता है कि प्रधानमंत्री पहले बोले होते तो हिंसा भी पहले रुक जाती। गृहमंत्री गए तो थे इंफाल और कुछ दिन वहां बिता कर भी आए, लेकिन वहां पहुंचे हिंसा शुरू होने के एक महीने बाद और चले आए कोई ठोस निर्णय लिए बिना।

हिंसा चलती रही उनके दिल्ली वापस आने के बाद। इस हिंसा के बारे में कई किस्म की खबरें फैलती रहीं। ज्यादातर अफवाहें इस बात को लेकर थीं कि भारतीय जनता पार्टी की ‘डबल इंजन’ सरकार के मुख्यमंत्री खुद मैतेई हैं और हिंदू भी, सो उनको ईसाई कुकी लोगों से हमदर्दी कम है। इस बात का अगर सबूत चाहिए, तो वह तब मिला जब उनको हटाए जाने की बात चली थी कुछ हफ्ते पहले।

जब इस्तीफा देने गए राजभवन, तो मैतेई महिलाओं की भीड़ इकट्ठा हो गई राजभवन के बाहर और उस भीड़ को देख कर उन्होंने अपना फैसला बदल दिया। मगर उनमें जरा भी नैतिकता है, तो अब उनको इस्तीफा दे देना चाहिए। जो राजनेता अपने राज्य के सबसे कमजोर लोगों की रक्षा नहीं कर सकता, उसको राजनेता कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।

विपक्ष की तरफ से अब खूब हल्ला मच रहा है संसद के इस सत्र में मणिपुर पर बहस करवाने के लिए और बहस होनी भी चाहिए। उम्मीद है कि सरकार इसको रोकने का कोई प्रयास न करे। आज शायद ही कोई दूसरा मुद्दा होगा, जो मणिपुर से ज्यादा अहमियत रखता हो। अब यह मसला सिर्फ एक राज्य का नहीं रहा, पूरे देश का बन गया है, इसलिए कि इस देश में शायद ही कोई महिला होगी, जिसने उस वीडियो को देखने के बाद अपने आप को उन दो औरतों की जगह न देखा हो। उन दो औरतों की शर्म और बेइज्जती न महसूस की हो।

यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी की महिलाएं भी मुंह खोलने लगी हैं। सच पूछिए तो मुझसे वह वीडियो देखा ही नहीं गया, लेकिन जो उसकी एक झलक देखी, उसमें दिखा कि उन दरिंदों की शक्लें साफ दिखती हैं, जिन्होंने इस राक्षसी घटना को अंजाम दिया था।

अब देश में इतना शोर मचने के बाद, हो सकता है कि उन सारों को गिरफ्तार किया जाए, लेकिन इस तरह की घटनाओं के लिए विशेष अदालतों की सख्त जरूरत है। ऐसी अदालतें, जहां कार्यवाही दिनों के अंदर समाप्त करके सजा सुनाई जाए। दुआ कीजिए कि निर्भया की तरह इन महिलाओं को दशकों इंतजार न करना पड़े न्याय के लिए। दुआ यह भी कीजिए कि जिन राक्षसों ने यह किया है उनको या तो फांसी की सजा हो या आजीवन कारावास की। जो लोग ऐसा कर सकते हैं, उनके सुधर जाने की कोई उम्मीद नहीं हो सकती है। एक बार ऐसा कर सकते हैं, तो दुबारा भी कर सकते हैं। यह मामला राजनीति का नहीं, इंसानियत का है और वे इंसान जो ऐसा कर सकते हैं उनको इंसान कहलाने का हक नहीं है।