पिछले हफ्ते भारत का झंडा चांद पर लहराया। पिछली बार की विफलता को देखते हुए मेरा मन तेईस अगस्त को दिन भर बेचैन रहा। मालूम था कि शाम तक कुछ नहीं होने वाला है, लेकिन बार-बार टीवी पर देखती रही और पांच बजे तो बैठ गई पल-पल का नजारा देखने। जब विक्रम लैंडर चांद पर पूरी सफलता और शान से उतरा, तो इतना गर्व हुआ कि खुशी के आंसू निकल पड़े।

फिर बीबीसी और सीएनएन देखने लगी, इसलिए कि याद था मुझे कि पिछली बार जब हम चांद तक नहीं पहुंच पाए थे, तो कई विदेशी पत्रकारों ने मजाक उड़ाया था भारत का। ऐसे भी थे लोग, जिन्होंने कहा कि भारत को अंतरिक्ष में जाने पर पैसे जाया नहीं करना चाहिए, जब तक गरीबी, अशिक्षा और भुखमरी की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता है।

विदेशी समाचार चैनलों पर हो रही थी खूब तारीफ हो रही थी

इस बार विदेशी समाचार चैनलों पर देखा कि खूब तारीफ हो रही थी अपने देश की। उल्टे-सीधे सवाल कम और शाबाशी ज्यादा रही। हमारे वैज्ञानिकों ने वास्तव में कमाल किया है, सो जितनी तारीफ उनकी की जाए कम होगी। मगर कुछ थोड़ा श्रेय प्रधानमंत्री को भी जाता है, इसलिए कि पिछली बार की कोशिश जब विफल रही, उन्होंने निजी तौर पर इसरो जाकर वैज्ञानिकों को हौसला न हारने की सलाह दी थी।

पीएम ने इसे पूरे विश्व के लिए बड़ी कामयाबी माना

इस बार दक्षिण अफ्रीका से वे ऐन उस समय दिख पड़े, जब विक्रम लैंडर चांद पर उतरा था और दरियादिली दिखाते हुए कहा कि वे पूरे विश्व के लिए इसे बहुत बड़ी कामयाबी मानते हैं, इसलिए कि उनका मंत्र है ‘वन अर्थ, वन फेमिली, वन प्लानेट’। अच्छा मंत्र है, लेकिन यह भी याद रखने की जरूरत है हमको कि भारत की गरीबी और अशिक्षा को सिर्फ हम मिटा सकते हैं। कोई और सामने आने वाला नहीं है हमारी मदद करने।

अंतरिक्ष में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद हमको धरती पर उतर कर देश के हाल को ध्यान से देखना चाहिए। चांद पर पहुंचने के अगले दिन हिमाचल से तस्वीरें आर्इं बड़ी-बड़ी इमारतों के गिरने की। बरसात के इस मौसम में कई बार ऐसा लगा, जैसे पूरे के पूरे पहाड़ी शहर बर्बाद हो गए हैं। हमारे वैज्ञानिक अगर हमको चांद तक पहुंचा सकते हैं, तो हमारे पहाड़ी शहरों को भी बचा सकते हैं। समस्या यह है कि इन शहरों का निर्माण उनकी सलाह लेकर नहीं किया है राजनेताओं ने।

न ही हमारे राजनेताओं ने विशेषज्ञों की मदद लेकर हमारी नदियों की सफाई करने का प्रयास किया है। नाम के वास्ते इनकी सलाह ली गई है ‘गंगा एक्शन प्लान’ और ‘यमुना एक्शन प्लान’ तैयार करने में, लेकिन जब इन योजनाओं को अमल में लाने का समय आया, तो राजनेताओं ने अपनी मर्जी से काम किया है। नतीजा हमारे सामने है। न गंगा का पानी साफ हुआ है और न यमुना का। हुआ यह है कि इन योजनाओं से खूब पैसा बना है राजनेताओं का, अधिकारियों का।

इस किस्म का भ्रष्टाचार दस्तूर-सा बन गया है अपने देश में। इसलिए अगर हमें विकसित होने का सपना साकार करना है 2047 तक, तो सबसे पहले हमको अपने राजनेताओं और सरकारी अफसरों की हस्तक्षेप करने की शक्ति पर नियंत्रण करना होगा। जहां भी इनका हस्तक्षेप दिखता है, वहां आपको यह भी दिखेगा कि कामयाबी कम और भ्रष्टाचार ज्यादा होता है।

आर्थिक मामलों में इनका दखल लाइसेंस राज के जमाने में इतना था कि देश के उद्योगपति और कारोबारी सरकारी इजाजत और लाइसेंस के बिना कुछ नहीं कर सकते थे। नतीजा यह कि देश की आधे से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारती थी। लाइसेंस राज जब समाप्त किया गया नरसिंह राव के दौर में, तब गरीबी की बेड़ियां तोड़ कर मध्यवर्ग में आने लगे करोड़ों भारतीय।

समाजवाद के नाम पर तकरीबन हर क्षेत्र में आज भी दिखता है राजनेताओं और आला अधिकारियों का दखल। जिस श्रेष्ठता को हमने देखा है अंतरिक्ष के क्षेत्र में, वह शायद न दिखता अगर इसमें राजनेताओं का हस्तक्षेप होता। चांद पर पहुंचने के अगले दिन से राजनीति का शर्मनाक खेल शुरू हो गया था। एक तरफ थे कांग्रेस के नेता, जिन्होंने सोशल मीडिया और टीवी पर कहना शुरू कर दिया कि श्रेय नेहरूजी और इंदिराजी को मिलना चाहिए, मोदी को नहीं। तो, दूसरी तरफ थे भाजपा वाले, जिन्होंने साबित करने की कोशिश की कि चांद पर पहुंचने का सारा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को मिलना चाहिए।

कैसे लोग हैं ये, जिनको राजनीति उस वक्त भी सूझती है, जब पूरा देश अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा है हमारे वैज्ञानोनिकों की इस महान कामयाबी को लेकर। मेरी जानकारी में ऐसा कोई भी आम भारतीय नहीं है, जिसका दिल खुशी और गर्व से पिछले हफ्ते भर न गया हो।

अपनी रोजमर्रा की कठिनाइयों को भूल कर सब लगे हुए थे एक-दूसरे को चांद पर पहुंचने की शुभकामनाएं देने में। इस जश्न में शामिल नहीं हुए छोटी सोच के वे राजनेता, जो श्रेय छीन कर अपने पसंदीदा राजनेताओं को देने में व्यस्त थे। इनके बारे में सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि अगर 23 अगस्त के दिन वे आपसी मतभेद को अलग कर देशवासियों के साथ खुशी मनाने में नहीं लग सके, तो बहुत छोटी सोच के लोग हैं ये।

इन्होंने साबित कर दिया एक बार फिर कि अंतरिक्ष जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में इनकी कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस काबिल ही नहीं हैं कि उनको कोई जगह दी जाए। कहना यह भी चाहती हूं कि इस सफलता से कोई सीख हम ले सकते हैं तो यह कि जितना हम राजनेताओं और राजनीति को इन क्षेत्रों से बाहर रखेंगे, उतनी ही जल्दी विकसित होगा भारत।