देश के स्मार्ट सिटी मिशन (Smart City Mission) को तय समय सीमा के भीतर केंद्र सरकार लागू नहीं कर पाई है। अब केंद्र ने इस मिशन को जून 2024 तक पूर्ण होने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हाल ही में केंद्र सरकार की विशेष समिति ने एक रपट में यह जानकारी दी है। रपट के मुताबिक, स्थानीय नेता जैसे सांसद, विधायक, जिलाधीश समेत अन्य जिम्मेदार लोगों की अनदेखी की वजह से ये योजनाएं पूर्ण नहीं हो पाई है। समिति ने सिफारिश की है कि इन जिम्मेदार लोगों को भविष्य में इस प्रकार की योजनाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

अमरावती और इंफल में योजना को लेकर चर्चा तक नहीं हुई

रपट में बताया गया है कि स्मार्ट सिटी की योजनाओं को प्रभावी तौर पर लागू किया जा सके, इसके लिए स्मार्ट सिटी परामर्शी मंच (SCAF) का प्रावधान किया गया था। रपट में यह सामने आया है कि बीते पांच वर्ष में एससीएएफ केवल आठ ही बैठक हुई थी। सितंबर 2023 में इसका कार्यकाल बढ़ाया गया था। इसके बाद भी अमरावती और इंफल में इस समिति की कोई बैठक ही नहीं हुई। इन बैठकों को बुलाकर जमीनी स्तर के विवादों को जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सुलझाया जा सकता था।

समिति ने तीन से छह महीने में बैठक करने का दिया सुझाव

समिति ने सिफारिश की है, भविष्य में बैठक कम से कम त्रैमासिक या अर्धवार्षिक आयोजित की जाए ताकि समस्याओं के साथ हल निकालने जा सकें। समिति को बताया गया है कि मंत्रालय ने 22814 करोड़ रुपए वाली करीब चार सौ परियोजनाओं को चिह्नित किया है, इन परियोजनाओं को पूरा करने में दिसंबर 2023 से आगे का समय लग सकता था। इसके बाद सरकार ने परियोजना की समय सीमा को जून 2024 तक के लिए बढ़ाया है। फंसी योजनाओं की प्रमुख वजह भूमि उपलब्धता, मुकदमेबाजी, विनियामक चुनौतियां, वित्तीय कठिनाइयां और प्रौद्योगिकी चयन से संबंधित मुद्दे रहे हैं। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि स्मार्ट सिटी मिशन के अगले चरण में शहरों और पर्यटक शहरों से पचास से सौ किलोमीटर के बीच के शहरों को जोड़ने की दिशा में काम करना चाहिए, जिन्हें पहले इस दायरे से बाहर रखा गया था।

रपट में बताया गया है कि इस मिशन के तहत सूरत, आगरा, अहमदाबाद, भोपाल, वाराणसी, मदुरै, पुणे, इंदौर, जयपुर आदि जैसे पर्याप्त संगठन और वित्तीय संरचना वाले शहरों ने अच्छा प्रदर्शन किया है जबकि पूर्वोत्तर राज्यों सहित छोटे शहरों में मिशन की रफ्तार धीमी रही है। रपट यह भी बताती है कि स्मार्ट सिटी योजना के तहत 205018 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव था, कुल प्रस्तावित निवेश में से 41022 करोड़ रुपए यानी केवल 21 फीसद के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की परिकल्पना तैयार की गई, आधे शहरों में कोई परियोजना शुरू नहीं हुई। 170400 करोड़ रुपए की कुल 7970 परियोजनाओं में से शहरों ने 10-794 करोड़ की कुल 207 परियोजना पर ही काम किया।

यह है शहरीकरण मिशन

2005 में जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन (Jawaharlal Nehru Urban Renewal Mission- JNURM) के तहत 65 शहरों को चिह्नित किया गया था। इन शहरों में सुधार को बढ़ावा देना था। मिशन के तहत केंद्र सरकार ने वर्ष 2005- 06 से 2011 – 12 तक सात वर्ष में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश की परिकल्पना की थी। इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी पचास हजार करोड़ रुपए तय की गई थी, जिसे वर्ष 2009 में संशोधित करके 6608465 कर दिया गया था।

इस मिशन के तहत राज्य सरकारों से पचास हजार करोड़ रुपए के योगदान की अपेक्षा की गई थी और यह मिशन मार्च 2014 में ही समाप्त हो गया था। इसके बाद जून 2015 में स्मार्ट सिटी मिशन को शुरू किया गया था और इसके दायरे में देश के सौ स्मार्ट शहरों को शामिल किया गया था। इसके लिए 2015 से 18 के बीच सौ शहरों का चयन किया गया था। इसके बाद मिशन को 2019 से 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया था।