Swaraj Bhavan Prayagraj: भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रयागराज (पुराना नाम इलाहाबाद) ने हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह शहर न केवल गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम के कई ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी भी रहा है। प्रयागराज की धरोहरों में से एक प्रमुख निशानी है स्वराज भवन, जो कभी मोतीलाल नेहरू के निवास के रूप में जाना जाता था और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र बना।

स्वराज भवन, जिसे पहले महमूद मंजिल के नाम से जाना जाता था, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की यादगार धरोहरों में से एक है। यह हवेली मूल रूप से 19वीं सदी में बनाई गई थी और बाद में नेहरू परिवार का घर बनी।

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मौजूदा समय में इसका प्रबंधन जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड, दिल्ली द्वारा किया जाता है और इसे संग्रहालय के रूप में जनता के लिए खोल दिया गया है। यहां महात्मा गांधी के चरखे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की तस्वीरें, नेहरू परिवार की निजी वस्तुएं और भूमिगत कमरे शामिल हैं, जिसका उपयोग कभी-कभी गुप्त बैठकों के लिए किया जाता था।

महमूद मंजिल से स्वराज भवन तक का सफर

1871 में, यह हवेली उत्तर-पश्चिमी प्रांत (NWP) के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर विलियम मुइर के कहने पर बनाई गई थी। इसका निर्माण 19वीं सदी के प्रमुख मुस्लिम शिक्षाविद और नेता सैयद अहमद खान के लिए किया गया था। इलाहाबाद में उनका स्थायी निवास नहीं था, और यह घर उनकी आधिकारिक यात्राओं के दौरान आवास के लिए बनाया गया।

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इस हवेली का नाम सैयद अहमद खान के बेटे सैयद महमूद के नाम पर महमूद मंजिल रखा गया। सैयद महमूद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के बाद यहां किराएदार के रूप में रहने लगे।

संपत्ति का स्वामित्व परिवर्तन

1873 में, सैयद अहमद खान के सहयोगी शेख फैयाज अली की मृत्यु के बाद, संपत्ति का प्रशासन इलाहाबाद कोर्ट ऑफ वार्ड्स द्वारा किया गया। इसके बाद, घर का स्वामित्व कई बार बदला। 1888 में इसे शाहजहांपुर के न्यायाधीश राय बहादुर परमानंद पाठक को बेच दिया गया। हालांकि, यह लंबे समय तक खाली पड़ा रहा और धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुंच गया।

मोतीलाल नेहरू का स्वामित्व

1900 में यह संपत्ति 19,000 रुपए में पंडित मोतीलाल नेहरू ने खरीदी। उस समय मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख वकील थे और इलाहाबाद में अपने बढ़ते राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव के लिए इस हवेली को नया रूप दिया। यह घर न केवल नेहरू परिवार का निवास बना, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक प्रमुख केंद्र भी बन गया।

स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका और नेहरू परिवार का योगदान

मोतीलाल नेहरू और उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। स्वराज भवन, उस समय स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकों, चर्चाओं, और रणनीतियों का मुख्यालय बन गया।

महात्मा गांधी का आगमन: महात्मा गांधी कई बार स्वराज भवन आए और यहां महत्वपूर्ण रणनीतियां बनाई गईं।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठकें: 1920 और 1930 के दशकों में कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण निर्णय यहीं लिए गए।

गुप्त बैठकें: स्वराज भवन के भूमिगत कमरे गुप्त बैठकों के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।

स्वराज भवन का संग्रहालय

आज यह भवन संग्रहालय के रूप में कार्य करता है, जहां स्वतंत्रता संग्राम की यादगार वस्तुएं रखी गई हैं। इनमें महात्मा गांधी का चरखा, नेहरू परिवार की निजी चीजें, और स्वतंत्रता आंदोलन की तस्वीरें शामिल हैं। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का केंद्र है, बल्कि आज की पीढ़ी को प्रेरित करने का स्रोत भी है।

सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक महत्व और यूनेस्को की मान्यता

कुंभ मेले की तरह, प्रयागराज का स्वराज भवन भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह भवन न केवल नेहरू परिवार की निजी कहानियों को बताता है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनकही गाथाओं को भी उजागर करता है।

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स्वराज भवन ने भारतीय समाज को न केवल राजनीतिक दिशा दी, बल्कि शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया। यह स्थान भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों का केंद्र बना।

प्रयागराज, जिसे स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र माना जाता है, में स्वराज भवन एक ऐसी धरोहर है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। इसके हर कोने में भारतीय इतिहास की अनमोल कहानियां छिपी हुई हैं। महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू जैसे महान नेताओं की विरासत को सहेजने वाला यह भवन आज भी स्वतंत्रता संग्राम की गूंज को जीवित रखता है।

स्वराज भवन का इतिहास हमें यह सिखाता है कि कैसे एक भवन न केवल दीवारों और छत से बना होता है, बल्कि उसमें छिपे होते हैं संघर्ष, प्रेरणा और स्वाभिमान के अनगिनत किस्से। यह भवन आज भी हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने और स्वतंत्रता के महत्व को समझने की प्रेरणा देता है।