Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि केवल अनुमान या साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का सहारा लेना किसी मामले में अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मामले में अन्य परिस्थितियों को साबित करने के लिए अपना दायित्व पूरा करना होगा, तथा ठोस और पुख्ता सबूत पेश करके आरोपी के अपराध को संदेह से परे साबित करना होगा।

हाल ही में दिए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में फिरौती के लिए अपहरण और हत्या के एक मामले में अशोक भोई को बरी कर दिया और एक अन्य आरोपी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले में कोई खामी नहीं पाई और छत्तीसगढ़ सरकार की अपील को खारिज कर दिया।

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने कहा कि यह सच है कि इस तर्क पर न्याय को निष्फल नहीं बनाया जा सकता कि एक निर्दोष को दंडित करने की अपेक्षा सौ दोषियों को छोड़ देना बेहतर है, क्योंकि काल्पनिक संदेह के आधार पर दोषियों को छोड़ देना कानून के अनुसार न्याय नहीं है। हालांकि, यह भी अच्छी तरह से स्थापित है कि संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, वह सबूत की जगह नहीं ले सकता।

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अभियोजन पक्ष के अनुसार, उत्तमलाल के दो बेटे थे – स्वप्निल और सुभाष। घटना के दिन स्वप्निल कहीं चला गया था, उत्तमलाल ने अपने दूसरे बेटे सुभाष को उसे ढूंढने के लिए भेजा। कुछ समय बाद स्वप्निल घर वापस आ गया, लेकिन सुभाष वापस नहीं आया।

रात करीब 9 बजे स्वप्निल के मोबाइल पर एक फोन आया, जिसमें सुभाष को वापस लाने के लिए 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई। सुभाष घर नहीं लौटा तो पिता ने दुर्ग के भिलाई थाने में एफआईआर दर्ज कराई। दो दिन बाद सुभाष का शव एक घर में मिला।

पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका है, क्योंकि कथित घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। अभियोजन पक्ष ने एक गवाह पेश किया, जिसने घटना की तारीख को शाम लगभग 6-7 बजे मृतक को आरोपी अशोक भोई के साथ देखा था।

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हालांकि, पीठ ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य बात है कि ‘आखिरी बार एक साथ देखे जाने’ के सिद्धांत को छोड़कर, अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए शायद ही कोई विश्वसनीय सबूत पेश किया गया हो।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह सच है कि गवाह ने कहा था कि उसने घटना के दिन शाम को आरोपी अशोक भोई को मृतक के साथ देखा था, लेकिन अकेले उक्त साक्ष्य उसे कथित अपराध का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने सही कहा है कि एसटीडी-पीसीओ से संबंधित व्यक्ति से भी पूछताछ नहीं की गई, ताकि यह आरोप साबित हो सके कि फोन कॉल प्रतिवादी – आरोपी – अशोक भोई द्वारा किया गया था। कोर्ट ने कहा कि घटना के दो दिन बाद लाठियां, कीलें और खून के धब्बों वाली टी-शर्ट की बरामदगी भी किसी भी तरह का भरोसा नहीं जगाती।

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