अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। पहले उन्होंने भारत में 25 फीसदी टैरिफ लगाया था लेकिन उसके बाद रूस से तेल खरीदने को लेकर नाराज चल रहे ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। इस बीच सूरत के हीरा व्यापारियों को नुकसान होना शुरू हो गया है। सूरत की हीरा कंपनियों को अमेरिकी ग्राहकों से क्रिसमस के लिए मिलने वाले ऑर्डर रोकने पड़े है। यह उनके लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि क्रिसमस बस पांच महीने दूर है। इस त्योहारी सीज़न में होने वाली बिक्री अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में साल भर की कुल बिक्री का लगभग आधा हिस्सा होती है।
टैरिफ का कितना असर?
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अतिरिक्त टैरिफ के कारण अमेरिका को नॉन इंडस्ट्रियल डायमंड (आभूषण या निवेश के लिए उपयुक्त हीरे) का निर्यात प्रभावित होगा। Gems and Jewellery Export Promotion Council (GJEPC) के आंकड़ों के अनुसार 2024 में अमेरिका के कुल हीरा आयात में भारत का हिस्सा मात्रा के हिसाब से 68% और मूल्य के हिसाब से 42% ($5.79 बिलियन) होगा। अमेरिका में हीरे के आयात में दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा 28% इज़राइल से था। इजरायल पर ट्रंप ने केवल 19% टैरिफ लगाया है।
कारखानों में उत्पादन 30-35 प्रतिशत कम
सूरत स्थित धर्मनंदन डायमंड्स प्राइवेट लिमिटेड (जिसका कारोबार लगभग 7,000 करोड़ रुपये का है) के निदेशक हितेश पटेल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका को निर्यात पहले ही 25% गिर चुका है और कारखानों में उत्पादन 30-35 प्रतिशत कम हो गया है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “नए टैरिफ लागू होने से निर्यात में और गिरावट आएगी।”
हितेश पटेल की कंपनी ने 2015 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहने गए मोनोग्राम वाले सूट को 4.31 करोड़ रुपये में खरीदकर सुर्खियाँ बटोरी थीं। उन्होंने कहा, “निर्यात से जुड़े हीरा उद्योग के प्लेयर्स 27 अगस्त पर नज़र रखे हुए हैं, जब 50% टैरिफ लागू होगा। अगर कुछ नहीं होता है, तो हम अमेरिका में खरीदारों से बातचीत करेंगे और उनसे कुछ हिस्सा खरीदने करने का अनुरोध करेंगे। जब उद्योग ऐसे कठिन दौर से गुजर रहा हो, तो खरीदार और विक्रेता के बीच संबंधों की परीक्षा होती है।”
GJEPC के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरीट भंसाली ने कहा कि भारतीय रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में हाई टैरिफ लगाए जाने और निर्यात में कमी से सूरत और मुंबई सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे। अमेरिका को कटे और पॉलिश किए हुए हीरों (CPD) का निर्यात 2021-22 के 9.86 अरब अमेरिकी डॉलर से लगातार गिरकर 2024-25 में 4.81 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया है। अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जो भारत के पूरे साल रत्न और आभूषण निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा है।”
खतरें में 1 लाख नौकरियां
किरीट भंसाली ने कहा, “अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ लगाने से आने वाले चार-पांच महीनों में अनुमानित 1,25,000 नौकरियां खत्म हो सकती हैं। गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे। इस तरह की नौकरियां खत्म होने से हीरे की कटाई और पॉलिशिंग, सोने-चाँदी के आभूषण और रंगीन रत्नों सहित कई क्षेत्रों पर असर पड़ने की आशंका है। निर्यात में कमी और नौकरियां खत्म होने का अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ेगा।”
किरण जेम्स के मालिक वल्लभभाई लखानी ने कहा, “हम अपना 70% माल अमेरिका को निर्यात करते हैं। भू-राजनीतिक स्थिति के कारण अमेरिका को हमारा निर्यात पहले ही 40% तक कम हो गया था। अब 50% के नए टैरिफ से हम चिंतित हैं। कम टैरिफ वाले अन्य देशों से हीरे को अमेरिका भेजना संभव नहीं है। एक अन्य बड़ी कंपनी धानी ज्वेल्स के अध्यक्ष विजय मंगुकिया ने कहा, “अमेरिका अन्य निर्यात गंतव्यों से अलग है। पूरी दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है जो अमेरिका की खपत क्षमता की भरपाई कर सके। ऐसे और भी देश हैं जिन्हें हम निर्यात करते हैं, लेकिन वे अमेरिका के सामने कहीं नहीं टिकते।”
कच्चे हीरों की कीमत में गिरावट
धर्मनंदन डायमंड्स (जिसकी हांगकांग, चीन, अमेरिका, बेल्जियम और बोत्सवाना में मौजूदगी है) कटे और पॉलिश किए हुए हीरों का निर्यात करता है। इसके अनुसार, “2022-23 में जब कारोबार फलफूल रहा था, कच्चे हीरों की कीमत 1,000 डॉलर प्रति कैरेट थी, जो अब घटकर 600 डॉलर प्रति कैरेट रह गई है। कच्चे हीरों की कीमतों में गिरावट का कारण यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पॉलिश किए हुए हीरों की मांग नहीं है।”
गोल्ड पर नहीं लगेगा नया टैरिफ, डोनाल्ड ट्रंप ने की घोषणा
दुनिया में पाए जाने वाले हर 10 पॉलिश किए हुए हीरों में से 8 सूरत में काटे और पॉलिश किए जाते हैं। इन्हें या तो खुले रूप में बेचा जाता है या सोने और चांदी में जड़ा जाता है। शहर में लगभग 5,000 छोटे, मध्यम और बड़े हीरा कारखाने हैं जिनमें छह लाख से अधिक पॉलिश करने वाले काम करते हैं। यह एक ऐसा काम है जिसमें स्किल और ट्रस्ट की जरूरत है। इसमें ज्यादातर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के प्रवासी शामिल हैं। सूरत में एक रत्न और आभूषण विशेष आर्थिक क्षेत्र और गुजरात हीरा बोर्स भी है।
किरीट भंसाली के अनुसार टैरिफ दरों में इस अचानक वृद्धि से भारत की बाजार हिस्सेदारी कम होने का खतरा है, मौजूदा ऑर्डर रद्द हो सकते हैं, रोजगार और एमएसएमई की स्थिरता प्रभावित हो सकती है। GJEPC के अध्यक्ष ने कहा, “तुर्की, वियतनाम, थाईलैंड और दुबई जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों पर अमेरिका ने 15% से 20% के बीच कम टैरिफ लगाया है। इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद अपेक्षाकृत कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। साथ ही मेक्सिको, कनाडा, तुर्की, यूएई या ओमान जैसे कम टैरिफ वाले डेस्टिनेशन के माध्यम से व्यापार के रास्ते बदलने की संभावना होगी, जिसका हमारे निर्यात पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।”
हालांकि हाल ही में यूनाइटेड किंगडम द्वारा भारत से आयातित रत्न और आभूषणों पर शुल्क समाप्त करने की घोषणा की गई। हीरा व्यापारी यूके को एक संभावित बाजार के रूप में देख रहे हैं। पिछले साल भारत से अमेरिका को 9,236.46 मिलियन डॉलर मूल्य के रत्न और आभूषण निर्यात किए गए, जबकि यूके को केवल 941 मिलियन डॉलर का निर्यात हुआ। अप्रैल 2025 से पहले अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले CPD और LGD हीरों पर कोई शुल्क नहीं था।
पहले से ही संकट में कारोबार
DE BEERS दुनिया के एक-तिहाई कच्चे हीरों का खनन करती है। उसने लंबे समय तक कम मांग की संभावना देखते हुए इस साल की दूसरी तिमाही में 2024 की इसी अवधि की तुलना में उत्पादन में 36% की कटौती की है। सूरत के प्रमुख हीरा उत्पादकों ने इस कदम को बाजार को स्थिर करने के प्रयास के रूप में देखा है। कच्चे हीरों के उत्पादन में गिरावट के साथ सूरत में हीरा काटने और पॉलिश करने वाली इकाइयों ने भी अपने उत्पादन में कटौती की, जिससे हीरा पॉलिश करने वालों के काम के घंटे कम हो गए। कई कंपनियों ने LGD का उत्पादन शुरू कर दिया, जो प्राकृतिक हीरों से सस्ते होते हैं।
सूरत के कतारगाम में एक प्राकृतिक हीरा कारखाने के मालिक घनश्याम पटेल 70 से ज़्यादा पॉलिशरों को रोज़गार देने वाली एक हीरा कटाई और पॉलिशिंग इकाई चलाते थे। लेकिन अब यहां केवल 10 लोग काम करते हैं। उन्होंने कहा, “पहले मैं प्राकृतिक हीरों की कटाई और पॉलिशिंग इकाई चलाता था और अब मैंने अपना व्यवसाय एलजीडी में ट्रांसफर कर दिया है। प्राकृतिक हीरों के लिए हमें ज़्यादा पूँजी की ज़रूरत होती है, जबकि एलजीडी में कम पूँजी लगती है। दोनों ही हीरों की कीमतों में काफ़ी अंतर होता है। अब एलजीडी की कीमतें भी गिर गई हैं, इसलिए हमें मुश्किल दौर का सामना करना पड़ रहा है। छंटनी के बाद हमारे कई एमरी व्हील कारखाने के कोने में पड़े हैं।”
वीनस जेम्स की आभूषण निर्यातक सेवंती शाह को जिन्हें इस व्यवसाय में छह दशकों का अनुभव है। उन्होंने कहा, “हमें 27 अगस्त तक स्थिति पर नजर रखनी होगी। टैरिफ़ ज़्यादा होने पर भी अमेरिका में हीरे जड़े आभूषण खरीदने वाले खरीदार अपने प्रियजनों के लिए जरूर खरीदारी करेंगे। वे आकार से समझौता कर सकते हैं, लेकिन वे इसे ज़रूर खरीदेंगे।” क्रिसमस के समय रत्न और आभूषणों का कारोबार चरम पर होता है।
सूरत के एक अन्य आभूषण निर्यातक लक्ष्मी डायमंड्स के चुन्नीभाई गजेरा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में (खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद) मध्य पूर्व और अन्य देशों जैसे नए बाजारों की खोज के कारण उनका कारोबार बढ़ा है। GJEPC के कार्यकारी निदेशक सब्यसाची रे ने कहा कि परिषद ने 7 अगस्त को वाणिज्य मंत्रालय को उद्योग की सहायता के लिए पत्र लिखा था। उन्होंने कहा, “मंत्रालय को दिए गए अपने सुझावों में हमने अगस्त से दिसंबर 2025 तक लागू, अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त शुल्कों के 25-50% के लिए एक टारगेटेड रिमबर्समेंट मैकेनिज्म शुरू करने का जिक्र किया है।”