सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने वाला अपना ही आदेश वापस ले लिया है। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के जज को शर्मिंदा करने का शीर्ष कोर्ट का कोई भी इरादा नहीं था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने दोहराया कि यह टिप्पणियां न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए की गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ही रोस्टर के मास्टर हैं और ऐसे मामलों पर फैसला लेने का अधिकार उन्हीं को होना चाहिए। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंच ने कहा, “चूंकि मुख्य न्यायाधीश ने अनुरोध किया है, इसलिए हम अपने 4 अगस्त के आदेश से अनुच्छेद 25 और 26 को हटाते हैं। इसे हटाते हुए, हम अब इस मामले को देखने का काम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ते हैं। हम पूरी तरह से स्वीकार करते हैं कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ही रोस्टर के मास्टर हैं।”

जस्टिस पारदीवाला ने क्या टिप्पणी की

जस्टिस पारदीवाला ने आदेश सुनाते हुए कहा, “सबसे पहले, हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि हमारा इरादा संबंधित न्यायाधीश को शर्मिंदा करने या उन पर आक्षेप लगाने का नहीं था। हम ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते। हालांकि, जब मामला एक सीमा पार कर जाता है और संस्था की गरिमा खतरे में पड़ जाती है, तो संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार के तहत कार्य करते हुए भी हस्तक्षेप करना इस न्यायालय की संवैधानिक जिम्मेदारी बन जाती है।”

आधे से कम जजों से चल रहा हाई कोर्ट

जज प्रशांत कुमार केस क्या है?

अब पूरे मामले पर गौर करें तो जस्टिस प्रंशात कुमार ने एक सिविल विवाद में क्रिमिनल समन को सही ठहराया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जस्टिस को कार्यकाल खत्म होने तक आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटा दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने उनके रिटायरमेंट तक उनके रोस्टर से आपराधिक मामलों को हटाने का निर्देश दिया और उन्हें एक बेंच में वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बैठने का काम सौंपा।

लाइव लॉ के अनुसार, आदेश की आलोचना होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने जस्टिस पारदीवाला की पीठ को पत्र लिखकर हाईकोर्ट जज के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर दोबारा विचार करने का आग्रह किया। इसी बीच, इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 जजों ने भी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश लागू न करने की अपील की। पूरे मामले को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…