सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश देते हुए कह दिया है कि वोटिंग डेटा को सार्वजनिक करने की मांग पर चुनाव के बाद फैसला लिया जाएगा। असल में ये मांग की जा रही थी कि हर चरण में जो वोटिंग होती है, उसका सारा डेटा सार्वजनिक किया जाए और चुनाव आयोग उसे अपनी वेबसाइट पर भी अपलोड करे। फॉर्म 17C के डेटा को भी जारी करने की बात हुई थी। लेकिन इन सभी मांगों पर तत्काल कोई फैसला देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या बोला?
सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि इस पर फैसला चुनाव के बाद भी किया जा सकता है। अभी छठे चरण की वोटिंग होने जा रही है, ऐसे में उस बीच कोई बदलाव करना सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने तो याचिकाकर्ता की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए हैं। पूछा गया है कि आखिर जब चुनाव शुरू हो गया, उसके बाद ही ऐसी याचिका क्यों दायर की गई। यहां तक कहा गया कि याचिकाकर्ता ने उचित मांग के साथ अपनी याचिका नहीं दी है। यानी कि मांग पर भी सवाल उठाया गया है और उसकी टाइमिंग को लेकर भी नाराजगी जाहिर की गई है।
चुनाव आयोग की क्या दलील?
चुनाव आयोग ने भी इस मामले में काफी तल्ख रवैया दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ऐसे याचिकार्ताओं पर भारी जुर्माना लगना चाहिए क्योंकि उनकी वजह से लोगों के मन में गलत शंकाएं घर कर जाती हैं। यहां तक कहा गया है कि चुनाव के समय ऐसी याचिकाएं दायर करना चुनाव की प्रक्रिया पर ही सवाल उठाने जैसा है। अभी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई भी फैसला देने से मना कर दिया है। चुनाव के बाद ही अब इस मुद्दे पर बहस होती दिखेगी।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
जानकारी के लिए बता दें कि सारा विवाद इसलिए शुरू हुआ था क्योंकि पहले और दूसरे चरण की वोटिंग प्रतिशत में काफी अंतर देखने को मिला। पहले जो आंकड़े जारी किए गए और बाद में जो आंकडे़ जारी हुए, उनमें काफी बदलाव था। उस अंतर को लेकर ही विवाद शुरू हुआ और विपक्ष ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा।
उसी के बाद मांग की गई कि Form 17C का जो भी डेटा होता है, उसे सार्वजनिक भी किया जाए और चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर भी डाले। ADR ने ही ये मांग सबसे पहले उठाई थी, लेकिन अभी के लिए इस पर कोई विचार नहीं होने वाला है।