अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को सौंपे जाने के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी, कमाल फारुकी और जफरयाब जिलानी समेत कई लोगों ने फैसले को लेकर असंतोष जाहिर किया है। उन्होंने फैसले का अध्ययन करने के बाद जरूरी कदम उठाने की बात भी कही है। जिलानी ने कहा कि वो फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और शांति बनाए रखने की भी अपील की। फिलहाल यह फैसला अंतिम नहीं माना जा सकता, असंतुष्ट पक्ष के पास भी कुछ रास्ते हैं।

ये हैं रास्तेः रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फैसले के खिलाफ 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल की जा सकती है। इसके बाद क्यूरेटिव पीटिशन दाखिल करने के लिए भी 30 दिनों का वक्त मिलता है, हालांकि इसके लिए याचिकाकर्ता को साबित करना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले में त्रुटि है।

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सुन्नी बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा का दावा खारिजः गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावों को खारिज करते हुए विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंप दी है। इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में पांच एकड़ जमीन देने और निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में शामिल करने का भी आदेश दिया है।


‘अतार्किक था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला’:
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के पुराने फैसले को कानूनी रूप से अतार्किक करार दिया था। करीब एक दशक से यह मामला कोर्ट के गलियारों में चल रहा था। कई बार इस पर सुनवाई हुई, आखिरकार चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बयान दिया कि सुप्रीम कोर्ट हर दिन अतिरिक्त सुनवाई के लिए तैयार है लेकिन इस मसले का हल होना चाहिए।