सुप्रीम कोर्ट ने जलीकट्टू को एक खेल के तौर पर मान्यता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तमिलनाडु सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया है। इस बेंच में जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार शामिल थे।

जल्लीकट्टू क्या है?

तमिलनाडु में फसल की कटाई के मौके पर चार दिन का पोंगल उत्सव मनाया जाता है। चार दिन के इस उत्सव में तीसरा दिन खास तौर पर जानवरों के लिए रखा जाता है। तमिल में जली का अर्थ है सिक्के की थैली और कट्टू का अर्थ है बैल का सींग। इस खेल परंपरा को करीब ढाई हजार साल पुराना बताया जाता है।

इस खेल में पहले तीन बैल छोड़े जाते हैं। इन बैल को कोई नहीं पकड़ता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। जब यह बैल चले जाते हैं तक जल्लीकट्टू शुरू होता है। इस खेल में सिक्कों की थैली को बैलों के सींग पर बांध दिया जाता है। लोगों को भागते हुए बैग से सींग से यह थैली हासिल करनी होती है। जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है।

क्यों हुआ विवाद?

इस खेल के दौरान 2010 से 2014 के बीच 17 लोगों की जान गई थी और 1,100 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। वहीं पिछले 20 सालों में जल्लीकट्टू की वजह से मरने वालों की संख्या 200 से भी ज्यादा थी। इस वजह से साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ क्रूअलटी टू एनिमल एक्ट के तहत इस खेल को बैन कर दिया था। जल्लीकट्टू को बैन करने की मांग एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और पीपल फॉर द एथिक्ल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (PETA), कॉमपैशन अनलिमिटिड प्लस एक्शन (CUPA) ने की थी। उनके साथ पशुओं के अधिकार के लिए बने काफी सारे संगठन भी इसमें शामिल थे। 2017 में तमिलनाडु सरकार ने क्रूरता कानून (संशोधन) से जल्लीकट्टू को राज्य में मान्यता दे दी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई लेकिन कोर्ट ने जल्लीकट्टू का मान्यता दे दी है।