Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में संविधान पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) को चुनने में अपनाए गए तरीके या अपनाए गए मानदंडों की व्याख्या कर सकते हैं। कोर्ट ने इसे परेशान करने वाली बात कहा कि भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) कभी एक महिला नहीं बन पाई। कोर्ट ने यह बात यह सुझाव देते हुए कही कि भारत के चुनाव आयोग (ECI) में नियुक्ति के दौरान लिंग विविधता महत्वपूर्ण है।
कोर्ट में दायर याचिका में क्या है ?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की इस पीठ ने जिस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बातें कही हैं उस याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट लोकसभा और राज्यसभा की तरह ईसीआई के लिए स्वतंत्र सचिवालय हो स्वतंत्र बजट हो तीनों आयुक्तों को समान अधिकार मिलें यानी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के अधिकार बाकी दोनों आयुक्तों को भी हों जरूरत पड़ने पर आयुक्तों को भी हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाए और स्थायी स्वतंत्र सचिवालय हो। साथ ही कोर्ट ने चुनाव की पारदर्शिता पर भी कई सवाल किए हैं।
कोर्ट ने क्या कहा ?
कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान एक गंभीर टिप्पणी करते हुए कई बातें कही हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कोई तंत्र नहीं है और आप अपनी तरह से काम कर रहे हैं। क्या यह संविधान बनाने वाले लोगों की इच्छाओं को मारने का काम नहीं है ? संविधान कहता है कि ऐसी नियुक्तियां संसद द्वारा किए जाने वाले कानून के प्रावधानों के अधीन होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
सीईसी और ईसी के चयन पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में हमें एक भी महिला मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं मिला है। ऐसा क्यों है ? हमें यह थोड़ा परेशान करने वाला लगता है। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार हैं। याचिका में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र प्रक्रिया का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्तों और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए भी ऐसी ही प्रक्रिया होनी चाहिए।