सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि नाबालिग के स्तनों को पकड़ना रेप का प्रयास नहीं है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के जज की संवेदनशीलता की कमी को देखकर दुख हुआ, जिन्होंने यह आदेश दिया था।
फैसला सुनाने वाले जज ने दिखाई असंवेदनशीलता- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले जज की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह फैसला सुनाने वाले जज की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता को दर्शाता है।”
बता दें कि मामले का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। हालांकि हैरानी वाली बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 24 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ PIL पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय जज की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा, “निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था बल्कि इसे सुरक्षित रखने के चार महीने बाद फैसला सुनाया गया। इसलिए इसमें विवेक का प्रयोग नहीं किया गया। हम आमतौर पर इसे इस चरण में स्टे देने में हिचकिचाते हैं लेकिन पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ है और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। इसलिए हम इस पर स्टे देते हैं। हम उत्तर प्रदेश, केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रस्तुत पक्षकारों को भी नोटिस जारी करते हैं।”
क्या था फैसला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि नाबालिग लड़की के स्तन को पकड़ना, उसके पायजामे के नाडे को तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना रेप या रेप की कोशिश के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले के आधार पर कासगंज जिले के तीन आरोपियों को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट से जारी समन आदेश में बदलाव करने को कहा है।