पश्चिम बंगाल में एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि हम चाहते हैं कि उस पीड़ित लड़की की ‘काउंसलिंग’ में पूरी तरह से निष्पक्षता हो। इस पर पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि हम पूरी तरह से किसी भी तरह की सहायता के लिए तैयार हैं। साथ ही यह भी कहा कि भाषा की समस्या को देखते हुए स्थानीय ‘काउंसलर’ को मौका दिया जाना चाहिए, जिससे भाषा की समझ में आसानी रहे।
हाईकोर्ट ने अपने विवादास्पद फैसले में युवा लड़कियों को यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने की सलाह दी थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त न्यायमित्र माधवी दीवान ने गुरुवार को कोर्ट को सुझाव दिया कि लड़की की ‘क्लीनिकल काउंसलिंग’ कर समुचित परामर्श दिया जाना चाहिए। इसके अलावा एक रिपोर्ट बनाकर कोर्ट में पेश की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार पहले से ही यह सब करा रही है।
पीठ ने कहा कि हम सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए महिला की ‘काउंसलिंग’ का आदेश दे रहे हैं कि उसने व्यक्ति का चुनाव सोच-समझकर किया है। हम इस बारे में आश्वस्त होना चाहते हैं। इस पर पीड़ित लड़की के वकील ने कहा कि लड़की उसी आदमी के साथ है और कहीं और अकेले नहीं रहना चाहती। इस मामले पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि हम इस पर आदेश पारित करेंगे।
मालूम है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था-नाबालिग लड़कियों को दो मिनट के मजे की जगह अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और नाबालिग लड़कों को युवा लड़कियों और महिलाओं की गरिमा का सम्मान करना चाहिए। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की। दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों को अपनी निजी राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए।
ऐसा आदेश किशोर वय अधिकारों का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषियों को बरी करना भी पहली निगाह में उचित नहीं जान पड़ता है।पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि ये टिप्पणी बेहद आपत्तिजनक और गैरजरूरी है। यह अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकारों का हनन है। अदालतों को किसी मामले में फैसला देते वक्त अपनी निजी राय या उपदेश देने से बचना चाहिए। कोर्ट ने वकील माधवी दीवान को न्यायमित्र नियुक्त किया था।