सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता हो जाने से केस को समाप्त नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केस को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देशभर में यौन उत्पीड़न पीड़ितों के न्याय के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
राजस्थान के गंगापुर का था मामला
मामला राजस्थान के गंगापुर का है, जहां 2022 में एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली नाबालिग दलित छात्रा ने अपने शिक्षक विमल कुमार गुप्ता पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। छात्रा ने आरोप लगाया कि गुप्ता ने उसके साथ अनुचित व्यवहार किया। इस घटना के बाद छात्रा के परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिस पर यौन शोषण का केस दर्ज हुआ। मामले की जांच में नाबालिग लड़की का बयान लिया गया और केस की प्रक्रिया शुरू हुई।
आरोपी ने पीड़िता से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया था
इस बीच, शिक्षक गुप्ता ने छात्रा के परिवार से समझौता कर लिया और उनसे एक स्टांप पेपर पर लिखवाया कि उन्होंने गलतफहमी के चलते पुलिस में शिकायत की थी और अब वे कोई कार्रवाई नहीं चाहते। इस समझौते के आधार पर राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत केस को रद्द कर दिया। हालांकि, निचली अदालत ने इसे मानने से इनकार कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने मामले को बंद करने का आदेश जारी कर दिया।
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हाईकोर्ट के इस फैसले से नाखुश सामाजिक कार्यकर्ता रामजी लाल बैरवा ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बैरवा ने याचिका दायर कर कहा कि यह फैसला नाबालिगों के अधिकारों का हनन है और समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मामले को रद्द नहीं किया जा सकता।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने साफ कहा कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों में समझौते का कोई स्थान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अपराध न केवल व्यक्ति विशेष के खिलाफ हैं बल्कि समाज के मूल्यों और सार्वजनिक हित के खिलाफ भी हैं। इसके बाद कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए आरोपी शिक्षक गुप्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता साफ कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय समाज में यौन उत्पीड़न के मामलों में समझौते के बढ़ते चलन पर रोक लगाने के रूप में देखा जा रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में समझौते की अनुमति देना पीड़ितों के लिए न्याय की राह में बाधा बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए और दोषियों को कानून के अनुसार सख्त सजा मिलनी चाहिए।
इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते से केस बंद करने की प्रक्रिया गलत है, और इसे अन्य पीड़ितों के लिए एक उदाहरण के रूप में देखा जाएगा।