सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि कार्यपालिका और विधायिका यह तय करेंगे कि क्या उन लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए, जो कोटे का लाभ ले चुके हैं और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में हैं। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पिछले साल अगस्त में शीर्ष अदालत की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए एक याचिका पर यह टिप्पणी की।
जस्टिस गवई ने कहा, “हमारा विचार है कि पिछले 75 सालों को ध्यान में रखते हुए ऐसे व्यक्ति जो पहले से ही आरक्षण का लाभ उठा चुके हैं और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में हैं, उन्हें आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए लेकिन इस बारे में निर्णय कार्यपालिका और विधायिका को लेना है।” संविधान पीठ ने बहुमत से फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) के अंदर सब-कैटेगाराइजेशन करने का संवैधानिक अधिकार है ताकि उनमें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों को उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके।
SC-ST के बीच क्रीमी लेयर पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस गवई ने कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच भी “क्रीमी लेयर” की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए। गुरुवार को याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें ऐसे “क्रीमी लेयर” की पहचान करने के लिए नीति बनाने को कहा गया था।
जिस पर जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का विचार है कि सब-कैटेगाराइजेशन स्वीकार्य है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान पीठ की ओर से राज्यों को नीति तैयार करने का निर्देश दिए हुए लगभग छह महीने बीत चुके हैं। पीठ ने कहा, “हम इस पर सुनवाई के इच्छुक नहीं हैं।”
सांसद बना सकते हैं कानून- SC
जब वकील ने याचिका वापस लेने और इस मुद्दे पर निर्णय ले सकने वाले संबंधित प्राधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन दायर करने की अनुमति मांगी तो अदालत ने इजाजत दे दी। वकील ने कहा कि राज्य नीति नहीं बनाएंगे और अंततः शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा तो इस पर अदालत ने कहा, “सांसद हैं न, सांसद कानून बना सकते हैं।”
पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा था कि राज्य पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक और प्रमाणित आंकड़ों के आधार पर सब-कैटेगाराइजेशन करें, न कि मनमाने तरीकों और राजनीतिक लाभ के आधार पर। सात न्यायाधीशों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का कोई उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ें jansatta.com का LIVE ब्लॉग
(इनपुट-भाषा)