सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सॉलिड वेस्ट के प्रबंधन को लेकर दिल्ली नगर निगम (MCD) को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि अगर इसपर काम नहीं हुआ तो दिल्ली में पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति बन जाएगी। वहीं कोर्ट ने एमसीडी से कहा कि वह जोखिम उठाकर भी सॉलिड वेस्ट प्रबंधन नियम, 2016 का कार्यान्वयन सुनिश्चित करें।

जस्टिस एएस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एमसीडी द्वारा दायर हलफनामे पर गौर करते हुए कहा, “हलफनामे के अनुसार हमें सुरंग के अंत में रोशनी नहीं दिख रही है। दिल्ली में 2027 तक भी सुविधाएं बनाने की कोई संभावना नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि दिल्ली को प्रभावित करने वाले वास्तविक मुद्दे केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव में फंसे हुए हैं। अदालत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को तत्काल समाधान निकालने के लिए सभी राज्य सरकार के अधिकारियों, एमसीडी के कमिश्नर और उसके अधिकारियों की तुरंत एक बैठक बुलाने को कहा है।

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कोर्ट ने केंद्र को तत्काल उपायों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान पीठ ने एमसीडी की वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी की कुछ टिप्पणियों पर नाराजगी व्यक्त की। जस्टिस एएस ओका ने आपत्ति जताते हुए कहा, “अगर कोई यह कहना चाहता है कि हम अनुचित हो रहे हैं, तो हम उस आरोप को खुशी से स्वीकार करेंगे क्योंकि मैं पिछले 21 वर्षों से ऐसे आरोपों का आदी हूं। उस आरोप के जोखिम पर भी मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि ये कानून लागू हों।”

वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि वह केवल यह बता रही थीं कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है। पीठ ने कहा कि वह अपराजिता सिंह से सहमत है कि दिल्ली में स्थिति आपातकाल वाली पैदा हो सकती है क्योंकि प्रतिदिन सॉलिड वेस्ट का उत्पादन 11,000 मीट्रिक टन (MT) से ऊपर है और एमसीडी द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रोसेसिंग प्लांट की क्षमता केवल 8,073 मीट्रिक टन है। इसलिए प्रति दिन 3000 (मीट्रिक) टन से अधिक सॉलिड वेस्ट पैदा हो रहा है।

एमसीडी की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि एमसीडी ने 10 जुलाई को एक पत्र के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार से अनुरोध किया था कि उसे 5 करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंध और निविदाएं लेने की शक्ति दी जाए। उन्होंने कहा, ”स्थायी समिति नहीं बुलाये जाने के कारण राज्य में गतिरोध बना हुआ है।”