सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने आदेश में आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की स्कीम 2018 में आई थी और तब से अब तक बिना किसी रुकावट के बॉन्ड्स की बिक्री जारी है। हमें फिलहाल इनके जारी होने पर कोई रोक लगाने का कारण नहीं मिलता।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनाव आयोग के उस तर्क के बाद आया है जिसमें आयोग ने कहा था कि अगर बॉन्ड्स नहीं होंगे, तो राजनीतिक दल सीधे कैश में लेनदेन करेंगे। हालांकि, चुनावी पैनल ने बॉन्ड्स के जरिए होने वाले लेन-देन में भी और पारदर्शिता लाने की बात कही।
ADR ने दायर की थी याचिका: बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) नाम के एनजीओ ने सर्वोच्च न्यायालय में मंगलवार को इस मामले में याचिका दाखिल की थी। एडीआर ने मांग उठाई थी कि कोर्ट केंद्र और अन्य पक्षों को यह निर्देश दे कि राजनीतिक दलों के वित्तपोषण और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले के लंबित रहने के दौरान और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए। न्यायालय ने बुधवार को ही इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट में उठा था चुनावी बॉन्ड्स के दुरुपयोग का मसला: सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले ही राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त की जाने वाली निधि के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में संभावित इस्तेमाल का मुद्दा उठाते हुए और केंद्र से सवाल किया कि क्या इन निधियों के इस्तेमाल के तरीकों पर किसी प्रकार का ‘‘नियंत्रण’’ है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि सरकार को चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त धन के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में दुरुपयोग की संभावना के मामले पर गौर करना चाहिए। न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन भी इस पीठ में शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘इस धन का इस्तेमाल कैसे होता है, इस पर सरकार का क्या नियंत्रण है?’’
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान सवाल किया कि मान लीजिए कि यदि कोई राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड से नकद राशि प्राप्त करना चाहता है और किसी विद्रोह को वित्तीय मदद देना चाहता है, तो सरकार का इसके इस्तेमाल पर क्या नियंत्रण है? पीठ ने कहा, ‘‘इस धन का आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है। हम चाहते हैं कि आप सरकार के तौर पर इस पहलू पर गौर करें।’’

