सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार (9 नवंबर) को सीजेआई पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में देश के 50वें सीजेआई के तौर पर चंद्रचूड़ को शपथ दिलाई। जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता लगभग सात साल और चार महीने तक सीजेआई रहे थे। ये शीर्ष अदालत के इतिहास में किसी सीजेआई का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है। वह 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक सीजेआई रहे थे।
जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट में 65 साल की उम्र में रिटायरमेंट होता है। उन्होंने सीजेआई यूयू ललित का स्थान लिया है, जिन्होंने 11 अक्टूबर को उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफारिश की थी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें 17 अक्टूबर को अगला सीजेआई नियुक्त किया था। 11 नवंबर 1959 को पैदा हुए जस्टिस चंद्रचूड़ 2016 को शीर्ष न्यायालय के जस्टिस के रूप में पदोन्नत हुए थे। जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान बेंचों के साथ ऐतिहासिक फैसले देने वाली बेंचों का हिस्सा रहे हैं। इनमें अयोध्या जमीन विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने जैसे फैसले शामिल हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ 29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 तक बांबे हाईकोर्ट के जस्टिस थे। उसके बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया था। जस्टिस चंद्रचूड़ को जून 1998 में बांबे हाईकोर्ट की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोनीत किया गया था। वह उसी साल अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के उन्होंने कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी किया। उन्होंने अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई बनने जा रहे हैं जब सरकार से शीर्ष अदालत के रिश्ते दुरुस्त नहीं हैं। कानून मंत्री किरन रिजिजु ने हाल ही में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में खाली पदों की मामलों की भरमार से कोई संबंध नहीं है। शीर्ष अदालत जमानत जैसे मसलों की भी सुनवाई कर रही है। इसकी वजह से वहां मुकदमों की भरमार है।