प्रवासी मजदूरों के मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि प्रवासी मजदूरों की यात्रा के किराए का कौन भुगतान कर रहा है। इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस राज्य से मजदूर जा रहे हैं और जहां पहुंच रहे हैं, उन दोनों राज्यों की सरकारें यह किराया वहन कर रही हैं।

तुषार मेहता ने कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूर कुल मजदूरों की संख्या का 80 फीसदी हैं। उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए तुषार मेहता ने कहा कि यूपी में मजदूरों को क्वारंटीन करने के बाद 1000 रुपए दिए जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब एफसीआई के पास सरप्लस खाद्यान्न है तो फिर खाने की कमी क्यूं है? कोर्ट ने सरकार से प्रवासी मजदूरों को खाना और आश्रय सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए।

तुषार मेहता ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को 5 किलो अनाज और एक किलो दालें दी गई हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अगर अनाज दिया गया है तो लोग सड़कों पर क्यों चल रहे हैं?

कोर्ट ने कहा कि मजदूरों को ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा कब मिलेगी या नहीं मिलेगी, इस पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए। इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर राज्यों का जवाब मिलने तक इंतजार करना चाहिए, उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।

सरकार के आलोचकों पर निशाना साधते हुए तुषार मेहता ने कोर्ट में दलील दी कि लोग बिना थके काम कर रहे हैं, उनमें सफाई कर्मचारी से लेकर पीएम तक शामिल हैं। लेकिन जो लोग सवाल खड़े कर रहे हैं उन्होंने सोशल मीडिया पर लेख लिखने के अलावा क्या किया है?