ऐसा कम ही देखने को मिलता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक जस्टिस ने अपने ही फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए ओपन कोर्ट में अफसोस जताया। उनका कहना था कि एनजीओ कॉमन कॉज बनाम केंद्र मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया वो उन्हें गलत लगता है। उन्हें लगता है कि इस पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। साथ ही वो यह भी बोले कि उन्हें नहीं पता कि फिर से सुनवाई हुई तो मामला किस तरफ जाएगा?
दरअसल जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय) के निदेशक संजय मिश्रा को दिए गए तीसरे एक्सटेंशन के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। उस दौरान उन्होंने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ रिट दायर करने वाले राजनेताओं की पैरवी कर रहे वकीलों की दलीलें सुनीं। जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच में जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संजय करोल भी शामिल थे।
ईडी डायरेक्टर को एक्सटेंशन देने के मामले में दायर याचिकाओं की सुनवाई
संजय मिश्रा को नवंबर 2018 में बतौर निदेशक ईडी नियुक्त किया गया था। उन्हें 60 वर्ष की आयु तक पहुंचने के दो साल बाद सेवानिवृत्त होना था। लेकिन नवंबर 2020 में सरकार ने नियमों में संशोधन किया। उनका कार्यकाल दो साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया। पिछले साल नवंबर में मिश्रा को एक साल का और विस्तार दिया गया, जिसे अब चुनौती दी गई है। केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में किए गए संशोधन को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जया ठाकुर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं।
एसजी बोले- संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाना जरूरी था, FATF रिव्यू में उनकी अहम भूमिका
तुषार मेहता ने संजय मिश्रा को दिए गए तीसरे एक्सटेंशन का बचाव करते हुए कहा कि ये बेहद जरूरी था। FATF के होने वाले रिव्यू को देखते हुए ये जरूरी है कि संजय मिश्रा निदेशक की सीट पर बरकरार रहें। उनकी दलील थी कि ईडी निदेशक को एक्सटेंशन तब विवादित हो सकता था जब किसी अन्य अफसर का इससे हक प्रभावित होता हो। लेकिन ईडी निदेशक की नियुक्ति का काम तो सीधे एक पैनल करता है। इसमें डिपार्टमेंटल प्रमोशन तो कहीं पर भी नहीं होता। उनका कहना था कि कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार पर किसी तरह की बंदिश नहीं लगाता है। मेहता का कहना था कि एक अफसर के न रहने से ईडी जैसी एजेंजी पर फर्क नहीं पड़ता। लेकिन उनकी मौजूदगी एक बड़ा फर्क पैदा कर सकती है।
मेहता ने किया कॉमन कॉज मामले का जिक्र को छलका जस्टिस गवई का दर्द
सॉलीसिटर जनरल ने जैसे ही कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। वैसे ही जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि वो मानते हैं कि उनसे गलती हो गई थी। खास बात है कि जिस बेंच ने दो साल पहले ये फैसला दिया था उस बेंच में खुद जस्टिस गवई भी शामिल थे। जस्टिस एल नागेश्वर राव उस बेंच की अगुवाई कर रहे थे। जस्टिस गवई ने आज कहा कि उनके साथी जज भी उनकी बात से इत्तेफाक रखते थे।
एएसजी से बोले जस्टिस, आप चुनौती दे सकते हैं, राजू ने कहा- कुछ फैसला हमारे मनमाफिक
जस्टिस गवई ने कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलीसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि वो कॉमन कॉज मामले में दिए गए फैसले को चुनौती दे सकते हैं। हम तीन जज हैं। उस पर फिर से विचार कर सकते हैं। राजू का कहना था कि उन्हें नहीं लगता है कि ऐसा करने की कोई जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे मुसीबतों का पहाड़ भी खड़ा हो सकता है। एएसजी ने मुस्कुराते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि फैसले का एक हिस्सा उनके मनमाफिक है।
डबल बेंच ने कॉमन कॉज मामले में एक्सटेंशन को ठहराया था सही लेकिन…
कॉमन कॉज बनाम केंद्र के मसले में जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच कहा था कि एक्सटेंशन असाधारण मामलों में थोड़े समय के लिए दिया जा सकता है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि ईडी प्रमुख को और कोई विस्तार नहीं दिया जाए।