Supreme Court verdict on Demonetisation: केंद्र की मोदी सरकार (Narendra Modi Government) द्वारा 2016 में लिए गए नोटबंदी (Demonetisation) के फैसले को देश की सर्वोच्च अदालत ने सही माना है। इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नोटबंदी के खिलाफ दायर हुईं 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसकी सुनवाई कर रही उच्चतम न्यायालय की एक बेंच में शामिल 5 न्यायाधीशों में से 4 जजों का मत एक रहा तो वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) की राय अलग रही।
RBI ने खुद के विवेक का इस्तेमाल नहीं किया- जस्टिस बीवी नागरत्ना:
4 जजों से अलग राय रखने वाली जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “आरबीआई की तरफ से पेश किए रिकॉर्ड्स को देखने पर पता चलता है कि RBI द्वारा खुद के विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है। रिकॉर्ड में मुझे “केंद्र सरकार के मुताबिक”, “सरकार ने 500 और 1000 नोटों को वैध करने वाले कानून को वापस लेने की सिफारिश की है”, “सिफारिश प्राप्त की गई” जैसे वाक्यों का प्रयोग मिला है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “ऐसे वाक्य खुद में ही दर्शाते हैं कि RBI ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और न ही उसके पास इतने गंभीर मामले में अपना विवेक लगाने के लिए समय था। इन सब तथ्यों का ऑब्जर्वेशन यह ध्यान में रखते हुए किया गया। क्योंकि कि 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को डिमोनेटाइजेशन करने की पूरी क़वायद 24 घंटे में हुई।”
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई की तरफ से नोटबंदी के प्रस्ताव को दी गई सहमति को आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के अंतर्गत सिफारिश के रूप में नहीं माना जा सकता है। न्यायाधीश ने नागरत्ना ने कहा कि इस मामले में मैं अपने साथी जजों से सहमत हूं लेकिन इसको लेकर मेरे तर्क अलग हैं।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार ने दिया और इस पर आरबीआई की राय मांगी गई थी। ऐसे में आरबीआई की राय को आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत सिफारिश की तरह नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि रिजर्व बैंक के पास इस तरह के अधिकार हैं भी तो भी इस तरह की सिफारिश आरबीआई नहीं कर सकती क्योंकि धारा 26 (2) के तहत अधिकार सिर्फ करेंसी नोटों की एक विशेष सीरीज के लिए हो सकती है न कि उस मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की पूरी सीरीज के लिए।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि केंद्र सरकार के कहने पर 500 और 1000 के नोटों की सभी सीरीज का डिमोनेटाजेशन करना आरबीआई द्वारा किसी विशेष सीरीज के डिमोनेटाजेशन की तुलना में अधिक गंभीर विषय है। इसलिए, इसको घोषणा या अधिसूचना जारी करने की जगह कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद लोकतंत्र का केंद्र है और उसे इस तरह के महत्वपूर्ण मामलों अलग नहीं छोड़ सकते।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “नोटबंदी को लेकर केंद्रीय बोर्ड के उद्देश्य मजबूत और उचित हो सकते हैं लेकिन इसे जिस तरीके से लागू किया गया वह कानून के अनुसार नहीं था।”