सुप्रीम कोर्ट ने आज वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा अदालत की अवमानना के मामले में सजा पर सुनवाई की। सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल भूषण को दो दिन की मोहलत देने का फैसला किया है, ताकि वे अपने बयान पर विचार कर सकें। इससे पहले जब कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही थी, तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने प्रशांत भूषण से कहा कि हर चीज की एक लक्ष्मण रेखा होती है, जो कि परंपराओं या तय नियमों पर आधारित है। उसे कभी नहीं तोड़ा जाना चाहिए।
जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच ने प्रशांत भूषण को चेतावनी दी कि अगर आप अपने बयानों को संतुलित नहीं करते हैं, तो इससे आप संस्थान को तबाह कर रहे हैं और कोर्ट किसी अवमानना के लिए इतनी आसानी से सजा नहीं देता।
प्रशांत भूषण ने अपने बयानों के संदर्भ में कहा कि मुझे लगता है कि लोकतंत्र में खुली आलोचना संवैधानिक अनुशासन को स्थापित करने के लिए है। संवैधानिक अनुशासन की रक्षा किसी के निजी या पेशेवर हितों में नहीं होने चाहिए। मेरे ट्वीट (जिनका संज्ञान लिया गया) सिर्फ नागरिक के तौर पर अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी को निभाने की छोटी कोशिश थे। उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट मुझे कोई सजा देना चाहता है, तो मैं तैयार हूं। लेकिन मेरी तरफ से इस मामले में किसी भी तरह की माफी मांगना अवमानना जैसा होगा।
हालांकि, जस्टिस मिश्रा ने कहा कि जनहित में अच्छे केसों का कोर्ट खुद स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि जज के तौर पर अपने 24 साल के करियर में यह पहली बार है जब मैंने किसी के खिलाफ अवमानना के लिए आदेश दिया हो।
सुनवाई के दौरान ही प्रशांत भूषण की तरफ से पेश हुए वकील राजीव धवन ने कहा कि इसका कोई आधार ही नहीं है कि प्रशांत भूषण के दो ट्वीट से सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा में कोई कमी आ जाएगी। धवन ने बेंच से पूछा कि आखिर क्यों कोर्ट को ऐसा लगा कि एक वरिष्ठ वकील के ट्वीट अपमानजनक थे।