सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बंगाल की ममता सरकार को बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल में कई जातियों का ओबीसी दर्जा रद्द करने से संबंधित मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट में आगे कोई कार्यवाही नहीं होगी। कोर्ट पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर एक याचिका सहित 10 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाओं में कलकत्ता हाई कोर्ट के 22 मई, 2024 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिनमें 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया गया था।

18 नवंबर को अगली सुनवाई

हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत ओबीसी के रूप में दिए गए 37 वर्गों के अलावा अप्रैल 2010 और सितंबर 2010 के बीच दिए गए 77 आरक्षण वर्गों को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस विपुल एम पंचोली की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर गौर किया कि हाई कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 18 नवंबर की तारीख तय की है।

जस्टिस गवई ने कहा, “जब मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है तो हाई कोर्ट इस मामले में कैसे आगे बढ़ सकता है। हम स्पष्ट करते हैं कि जब तक अगला आदेश पारित नहीं हो जाता, कलकत्ता हाई कोर्ट में आगे कोई कार्यवाही नहीं होगी।” न्यायालय ने कहा कि याचिकाओं पर अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।

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हाईकोर्ट का आदेश गलत लगता है- सुप्रीम कोर्ट

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा पहली नजर में हाईकोर्ट का आदेश गलत लगता है। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ऐसा आदेश कैसे दे सकता है? जबकि आरक्षण तय करना सरकार का काम है, अदालत का नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की नई ओबीसी सूची को लागू करने की अनुमति दे दी।

जब लिस्ट पर हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था, “नई लिस्ट में मुस्लिम उप-समूहों की संख्या 77 से बढ़कर 80 हो गई है और गैर-मुस्लिम समूहों की संख्या 36 से बढ़कर 60 हो गई है। बंगाल में नए OBC सर्वे में पिछड़ापन ही एकमात्र मापदंड था, धर्म नहीं। लिस्ट बनाते समय सिर्फ यह देखा गया कि कौन पिछड़ा है, यह नहीं देखा गया कि कौन किस धर्म का है।”