इलाहाबाद हाईकोर्ट के रवैये से सुप्रीम कोर्ट खासा आहत है। इतना कि जस्टिस ने सीधे तौर पर अपनी नाखुशी का इजहार ओपन कोर्ट में कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एक बेल के मामले में उत्तर प्रदेश के चीफ जस्टिस को कहा था कि केस को किसी दूसरी बेंच के सुपुर्द किया जाए। लेकिन चीफ जस्टिस ने सुप्रीम फरमान को नजरंदाज करते हुए केस को उस बेंच के हवाले कर दिया जो छह माह से उस पर फैसला नहीं सुना पा रही थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्ला ने तल्ख तेवरों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा कि बावजूद इसके कि आप हमारे आदेश को मानकर केस को किसी दूसरी बेंच के हवाले करते, आपने उस बेंच के पास फिर से केस भेज दिया जो छह माह से फैसले को रिजर्व रखे बैठी थी।
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि आप ऐसी बेंच से किस तरह की उम्मीद कर सकते हैं। चीफ जस्टिस को कहा गया कि वो किसी दूसरी बेंच का गठन करके मामले को उसके हवाले करें। जस्टिस कौल ने कहा कि नई बेंच इस मामले की तेजी से सुनवाई करे।
सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से तलब किया था केस का ब्योरा
दरअसल, एक मामले के दोषी ने 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। वो 16 साल 9 महीने 18 दिन से जेल में बंद है। हाईकोर्ट अगस्त 2022 में उसकी अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। उसने 2001 के अनिल राय बनाम बिहार सरकार के केस का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कोई बेंच छह माह के समय में फैसला नहीं सुना पाती है तो केस को दूसरी बेंच के सुपुर्द कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से सारा ब्योरा तलब किया था।
रजिस्ट्रार जनरल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि फैसला रिजर्व नहीं है। 19 मई को बेंच फैसला सुनाने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आपसे किसी दूसरी बेंच के पास केस को लिस्ट करने के लिए कहा गया था। लेकिन आपने उसी बेंच के पास केस भेज दिया। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि कोई दूसरी बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। 19 मई को आने वाले फैसले का कोई मतलब नहीं है।