मेरे एक लेख के जवाब में प्रोफेसर कैलाश जेंगर ने एक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने मूल रूप से यही कहा है कि आज भी दलितों के साथ अत्याचार और भेदभाव किया जाता है और जब तक यह जारी रहता है तब तक जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था खत्म नहीं की जा सकती। मैंने कभी इससे इनकार नहीं किया कि दलितों के साथ आज भी अत्याचार और भेदभाव हो रहा है। पर सवाल यह है कि जाति व्यवस्था को कैसे नष्ट किया जा सकता है, जो आज भारत की सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयों व अधर्मों में से एक है?
मैं यह मानता हूं कि- जाति आधारित आरक्षण जाति व्यवस्था को खत्म करने के बजाय इसे और गहराई और मज़बूती से स्थापित करने में मदद करता है। मेरी राय में जाति व्यवस्था को केवल तब नष्ट किया जा सकता है जब भारत को एक औद्योगिक देश में बदल दिया जाए। भारत में पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जाति की पकड़ बहुत कमजोर है,क्योंकि ब्रिटिश शासकों द्वारा इसे आंशिक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में अधिक औद्योगिक बनाया गया था जबकि यूपी और बिहार, काफी हद तक सामंती थे ।
लेकिन औद्योगीकरण होता कैसे है? देशभक्त आधुनिक दिमाग वाले नेताओं के नेतृत्व में एक क्रांति के बाद ही यह संभव है, और यह वर्तमान प्रणाली के भीतर हासिल नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र प्रदान करती है, जो बड़े पैमाने पर भारत में जाति और सांप्रदायिक वोट बैंक के आधार पर चलती है।
जातिवाद और सांप्रदायिकता सामंती ताक़तें हैं, भारत को अगर प्रगति करनी है तो इन्हे नष्ट करना होगा, लेकिन संसदीय लोकतंत्र उन्हें और भी मज़बूत करती है। ऐसी स्थिति में जब तक संसदीय लोकतंत्र रहेगा, भारत कैसे प्रगति कर सकता है?
वर्तमान में सभी दलों के हमारे राजनीतिक नेता तेजी से देश के औद्योगिकीकरण का नहीं बल्कि केवल अगला चुनाव जीतने का लक्ष्य रखते हैं, और इसके लिए उनका प्रमुख उपकरण जातिवाद और सांप्रदायिकता है।
ऐसी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण, जिसके तहत भारत में तेजी से औद्योगिकीकरण होगा, केवल देशभक्त आधुनिक दिमाग वाले व्यक्तियों के नेतृत्व में एक शक्तिशाली, ऐतिहासिक एकजुट जनसंघर्ष के बाद ही हो सकता है, जो देश में पिछड़े सामंती विचारों, रीति-रिवाज़ों और प्रथाओं की गंदगी को दूर कर सके। ऐसा ऐतिहासिक जनसंघर्ष स्वयं जाति व्यवस्था को नष्ट कर देगा।
लेकिन भारत को बदलने और विकसित उच्च औद्योगिक देशों की श्रेणी में लाने के लिए ऐसा ऐतिहासिक संघर्ष केवल तभी सफल हो सकता है जब हम एकजुट हों, और जाति आधारित आरक्षण हमें विभाजित करता हैं।
दलितों और ओबीसी के बजाय आरक्षण वास्तव में हमारे कुटिल और चालाक राजनेताओं को लाभान्वित करता है, जो समाज का ध्रुवीकरण करते हैंं और वोट पाने के लिए जातिगत और सांप्रदायिक नफरत फैलाते हैंं।
इसलिए आरक्षण केवल वोट प्राप्त करने की एक चाल है। प्रोफेसर जेंगेर को इन बातों पर विचार करने की जरूरत है।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं और यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)