Jallikattu and bullock cart races : पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) के नेतृत्व में याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित ‘जल्लीकट्टू’ कानून को रद्द करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकारों के इन कानूनों को चुनौती देने वाली इस याचिका को स्थगित करने से इनकार कर दिया है।
क्या कहा कोर्ट ने ?
तमिलनाडु सरकार के वकील ने उच्चतम न्यायालय से शीतकालीन अवकाश के बाद मामले की सुनवाई करने का आग्रह किया था क्योंकि मामले में एक संकलन दायर किया जाना है। जिसके बाद न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को स्थगित करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जल्लीकट्टू जनवरी में है हम इस मामले की सुनवाई को स्थगित नहीं करेंगे। जस्टिस केएम जोसेफ अजय रस्तोगी अनिरुद्ध बोस हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच सदस्यीय संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को संदर्भित किया था कि क्या तमिलनाडु और महाराष्ट्र के लोग ‘जल्लीकट्टू’ और बैलगाड़ी दौड़ को अपने सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित कर सकते हैं और संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत अपनी सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
कोर्ट ने कहा संविधान की व्याख्या से जुड़ा है मामला
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लेने की आवश्यकता है क्योंकि उनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। बड़ी पीठ यह तय करेगी कि क्या राज्यों के पास इस तरह के कानून बनाने के लिए “विधायी क्षमता” है जिसमें जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ भी शामिल है जो अनुच्छेद 29 (1) के तहत निहित सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आता है और संवैधानिक रूप से संरक्षित किया जा सकता है।
तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने किया था कानून में संशोधन
तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने केंद्रीय कानून पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में संशोधन किया था और जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दी थी। पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) के नेतृत्व में याचिकाओं के एक बैच ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित ‘जल्लीकट्टू’ कानून को रद्द करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी जिसमें जानवरों के संरक्षण का हवाला दिया गया था। पेटा ने जानवरों के साथ क्रूर बर्ताव को गलत बताया था। शीर्ष अदालत ने इससे पहले तमिलनाडु सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें राज्य में जल्लीकट्टू के आयोजनों और देश भर में बैलगाड़ियों की दौड़ में बैलों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले 2014 के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी।