Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक अप्रैल 2005 के बाद से केंद्र सरकार, खनन कंपनियों से खनिज संपन्न भूमि पर रॉयल्टी का पिछला बकाया वसूलने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र, खनन कपंनियों द्वारा खनिज संपन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी के बकाये के भुगतान पर किसी तरह का जुर्माना न लगाने का निर्देश दिया।
संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘राज्य पिछले कर का दावा कर सकते हैं, लेकिन शर्तों के साथ कि कर की मांग 1 अप्रैल, 2005 से पहले के लेन-देन पर लागू नहीं होगी’।
नौ जजो कीं पीठ के न्यायाधीशों द्वारा बहुमत से दिए गए फैसले में कहा गया, “यह दलील कि” निर्णय “को भावी प्रभाव दिया जाना चाहिए, खारिज की जाती है।” पिछले समय से उत्पन्न होने वाले परिणामों को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित शर्तों को लागू करने का निर्देश दिया जाता है। जबकि राज्य निर्णय में निर्धारित कानून के अनुसार सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टियों 49 और 50 से संबंधित कर की मांग कर सकता है या नवीनीकृत कर सकता है। कर की मांग 1 अप्रैल 2005 से पहले के लेनदेन पर लागू नहीं होगी।
बेंच ने कहा कि ‘कर की मांग के भुगतान का समय 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होकर 12 वर्षों में किस्तों में बांटा जाएगा।’ पीठ ने कहा कि 25 जुलाई, 2024 से पहले की अवधि के लिए की गई मांगों पर ब्याज और जुर्माना माफ कर दिया जाएगा।
25 जुलाई को 8-1 के बहुमत वाले फैसले में नौ जजों की बेंच ने राज्यों को अपनी ज़मीन से खनिज निकालने पर रॉयल्टी लगाने के अधिकार को बरकरार रखा था और कहा था कि वे खदानों और खदानों वाली ज़मीन पर भी कर लगा सकते हैं। बहुमत का फैसला सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस हृषिकेश रॉय, एएस ओका, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने सुनाया था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने असहमति जताई। बहुमत के फैसले से असहमत होते हुए जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमतिपूर्ण फैसले में इंडिया सीमेंट के फैसले को खारिज करने के संभावित परिणामों के प्रति आगाह किया, जिसमें “संघीय प्रणाली का टूटना” और राज्यों के बीच “अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा” शामिल है।
25 जुलाई के फैसले ने इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में 1989 के 7 जजों की पीठ के फैसले को खारिज कर दिया था। जिसमें कहा गया था कि रॉयल्टी एक कर है और राज्य विधानसभाओं में खनिज अधिकारों पर कर लगाने की क्षमता नहीं है, क्योंकि यह विषय खनिज और खान (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के अंतर्गत आता है, जिसे संविधान की सूची I (संघ सूची) की प्रविष्टि 54 के तहत शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था। बहुमत के फैसले में कहा गया कि 1957 के अधिनियम की धारा 9 के तहत परिकल्पित रॉयल्टी “कर की प्रकृति की नहीं है”।
पीठ ने कहा कि संसद राज्यों को सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 50 के आधार पर खनिज अधिकारों पर कर लगाने से रोक सकती है, लेकिन उसने बताया कि 1957 के अधिनियम में ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है, जो इस क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जो राज्यों की खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति पर सीमाएं लगाता है। पीठ ने आगे कहा कि ऐसा होने पर एमएमडीआर अधिनियम की योजना को विस्तारित निर्माण की प्रक्रिया द्वारा, सूची II की प्रविष्टि 50 के तहत राज्य की कर लगाने की शक्तियों को सीमित करने के लिए नहीं पढ़ा जा सकता है।
जबकि सूची II की प्रविष्टि 49 “भूमि और भवनों पर कर” से संबंधित है, सूची II की प्रविष्टि 50 “खनिज विकास से संबंधित संसद के कानून द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध के अधीन खनिज अधिकारों पर कर” से संबंधित है।