भारतीय सेना की परीक्षा पास करने के बाद कैडेट अफसरों को ट्रेनिंग से गुजरना होता है। इन कैडेट अफसरों को सभी छह अकादमियों में ट्रेनिग दी जाती है। 11 अगस्त को द इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमे बताया गया था कि कैसे कुछ कैडेट अधिकारी बढ़ते चिकित्सा खर्चों और खराब लाभों के साथ गंभीर विकलांगता से जूझ रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि नियमों के अनुसार ये कैडेट पूर्व सैनिकों (ईएसएम) का दर्जा पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उनकी विकलांगता अधिकारी के रूप में कमीशन हासिल करने से पहले प्रशिक्षण के दौरान हुई थी। अगर वे ईएसएम का दर्जा पा जाते तो ईसीएचएस (Ex-Servicemen Contributory Health Scheme) के तहत सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए पात्र हो जाते।
Amicus Curiae ने क्या सुझाव दिए थे?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशिक्षण के दौरान हुई विकलांगता के कारण शीर्ष सैन्य संस्थानों से बर्खास्त किए गए अधिकारी कैडेटों के मामले की जांच के लिए न्यायमित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किया था। वरिष्ठ अधिवक्ता रेखा पल्ली को कोर्ट ने न्यायमित्र नियुक्त किया था। रेखा पल्ली ने सभी अधिकारी कैडेटों और पात्र आश्रितों के लिए ईसीएचएस के अंतर्गत कवरेज, लेफ्टिनेंट/फ्लाइंग ऑफिसर के पद के बराबर अनुग्रह राशि में वृद्धि, विकलांगता पेंशन के लिए पिछली सिफारिशों का कार्यान्वयन, तत्काल राहत के लिए एकमुश्त मुआवज़ा, पुनर्वास के लिए समय-समय पर चिकित्सा पुनर्मूल्यांकन, उच्च शिक्षा में आरक्षण और बेहतर बीमा का सुझाव दिया था।
मंगलवार को जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने निर्देश दिया कि इन सुझावों को सेना, नौसेना और वायु सेना सेवा मुख्यालयों के समक्ष रखा जाए ताकि वे इन कैडेटों के पुनर्वास के लिए एक योजना तैयार कर सकें। पीठ ने इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया।
Amicus Curiae ने अदालत में अपनी दलील में कहा, “अनुमान है कि इन संस्थानों से हर साल लगभग 40-50 कैडेटों को मेडिकल बोर्ड आउट किया जाता है, और इनमें से 10% घायल कैडेटों को इतनी गंभीर चोटें आती हैं कि वे किसी भी रोज़गार के लिए अयोग्य हो जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशिक्षण के दौरान मेडिकल बोर्ड आउट किए गए इन कैडेटों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है। यह सुनिश्चित करने के लिए सार्थक कदम उठाने से कि इन कैडेटों को उनका उचित हक मिले – ताकि वे एकाकी जीवन जीने के बजाय सम्मान और उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकें।”
Amicus Curiae के अनुसार, “आज तक लगभग 400 कैडेटों को सभी छह अकादमियों, यानी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), पुणे; भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून; अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (OTA), चेन्नई; अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी, गया; वायु सेना अकादमी (AFA), हैदराबाद और भारतीय नौसेना अकादमी (INA), केरल से बोर्ड आउट किया जा चुका है।”
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुझाव पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “हमने समझा कि सबसे महत्वपूर्ण प्रस्तुतिकरण यह है कि जो सैनिक प्रशिक्षण पूरा नहीं कर पाते हैं, उन्हें लाभ मिल रहा है, लेकिन जो अधिकारी बनने वाले हैं और अपना प्रशिक्षण पूरा नहीं कर पाते, उन्हें बेसहारा छोड़ दिया जाता है। इस हद तक यह बहुत निराशाजनक है। अन्यथा, वे अधिकारी होते। तो इसके लिए क्या किया जा सकता है?”
वहीं जो ईएसएम दर्जा के हकदार हैं, इन अधिकारी कैडेटों को केवल विकलांगता की सीमा के आधार पर 40,000 रुपये प्रति माह तक का अनुग्रह भुगतान मिलता है। यह राशि उनकी बुनियादी जरूरतों से बहुत कम है, वे कहते हैं, अकेले चिकित्सा खर्च की लागत औसतन लगभग 50,000 रुपये प्रति माह या उससे अधिक है।
रक्षा मंत्री ने दी थी मंजूरी
इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल ऐसे मामलों में दी जाने वाली अनुग्रह राशि बढ़ाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन यह फ़ाइल रक्षा और वित्त मंत्रालयों के बीच अटकी रही। कई रिपोर्ट्स के बाद 29 अगस्त को रक्षा मंत्रालय ने इन अधिकारी कैडेटों को ईसीएचएस के तहत मुफ़्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कीं और 4 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से इन कैडेटों के लिए आर्थिक मुआवज़ा और बीमा कवर बढ़ाने पर विचार करने को कहा।
एमिकस ने दलील दी कि सरकार ने ईसीएचएस कवर बढ़ाया है लेकिन यह लाभ भविष्य में और एकसमान आधार पर नहीं दिया गया है। इसके बजाय इसका उपयोग केवल एकमुश्त विशेष छूट के रूप में पिछले मामलों तक ही सीमित है।”
एमिकस ने कहा, “यह दृष्टिकोण मूल रूप से अनुचित, मनमाना और समान व्यवहार के सिद्धांत के साथ असंगत है। इसलिए एक सुसंगत और व्यापक नीति तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि सभी कैडेट (पूर्व और भविष्य के) को आटोमेटिक और सुनिश्चित ईसीएचएस कवरेज मिले, और इस लाभ में उनके पात्र आश्रित भी शामिल होने चाहिए।”
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि एमिकस के नोट में कई अच्छे सुझाव हैं। ऐश्वर्या भाटी ने कहा, “सेवा मुख्यालय के विशेषज्ञों द्वारा उन पर विचार किया जा सकता है और उसके बाद वे रक्षा मंत्रालय को सिफारिशें कर सकते हैं। बाद में रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय संयुक्त रूप से सिफारिशों पर विचार कर सकते हैं और (उनकी) प्रतिक्रिया इस अदालत के समक्ष रखी जा सकती है।”
एमिकस ने दलील में क्या कहा?
अपनी दलील में एमिकस ने कहा कि प्रतिभाशाली और युवा कैडेट, जो राष्ट्र की सेवा के लिए स्वेच्छा से आगे आने वाले युवा पुरुषों और महिलाओं की आकांक्षाओं को साकार करते हैं और सैन्य सेवा के प्रशिक्षण के कारण प्राप्त विकलांगताओं के कारण बोर्ड से बाहर हो जाते हैं, उन्हें अनिश्चितता में नहीं छोड़ा जा सकता। एमिकस ने कहा, “एक समय गर्व के साथ वर्दी पहनने और अंतिम बलिदान तक राष्ट्र की सेवा करने की आशा के साथ प्रशिक्षण लेने के बाद, बीच में ही मेडिकल बोर्ड से बाहर होने से इन कैडेटों को विश्वासघात का अहसास होता है और वे उसी व्यवस्था से पीछे छूट जाते हैं, जिसके लिए वे अपना जीवन समर्पित करना चाहते थे।”
एमिकस ने दलील दी, “इतनी कम उम्र और कमज़ोर अवस्था में भुला दिए जाने का यह एहसास उनके और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा झेली जाने वाली आर्थिक और अन्य कठिनाइयों के अलावा, अक्सर गहरे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक संकट का कारण बनता है। इसके कारण अक्सर चिंता, डिप्रेशन और संदेह पैदा होता है, इसलिए प्रशिक्षित पेशेवरों द्वारा एक मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक परामर्श की आवश्यकता है। सुझाए गए उपाय वर्दी में राष्ट्र की सेवा करने के जीवन भर के सपने के टूटने की भरपाई नहीं कर सकते और न ही इन कैडेटों और उनके परिवारों द्वारा किए गए बलिदानों की पर्याप्त भरपाई कर सकते हैं। एक राष्ट्रीय नीति ढाँचे की तत्काल आवश्यकता है जो पुनर्वास, उचित मुआवज़ा, शैक्षिक निरंतरता, मनोवैज्ञानिक सहायता और सरकारी सेवाओं में पार्श्विक समावेशन सुनिश्चित करे।”