कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण लेने के बाद ही येदियुरप्पा के लिए एक अतिरिक्त परेशानी खड़ी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के खिलाफ जमीन हड़पने के एक मामले में एक याचिका पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी। इस मामले में मुख्यमंत्री के सह-आरोपी वरिष्ठ कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार हैं।

मामला साल 2010 में सीएम रहते हुए एक सरकारी प्लॉट को डीनोटिफाई करने का है। आरोप है कि येदियुरप्पा ने सरकारी प्लॉट पर गैरकानूनी ढंग से कब्जा करने में अपने राजनीतिक विरोधी व कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार की मदद की। इस मामले वास्तविक याचिकाकर्ता कब्बाले गौड़ा ने इस साल फरवरी में भूमि हड़पने के इस मामले में याचिका को वापस ले लिया था।

दूसरी तरफ एनजीओ समाज परिवर्तन समुदाय की पैरवी करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को फिर से खोले जाने की मांग की। इस एनजीओ ने मूल मामले में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया। इसमें तर्क दिया गया था कि गौड़ा ने बिना किसी सूचना के याचिका वापस ले ली।

जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की पीठ ने येदियुरप्पा के वकील मुकुल रोहतगी से कहा, ‘ऐसा (याचिका को वापस लेना) पीछे (एनजीओ के) से कैसे किया जा सकता है।’ वहीं, शिव कुमार की पैरवी करने वाले वकील अभिषेक सिंघवी ने रोहतगी की दलील का समर्थन करते हुए कहा कि ‘एक हस्तक्षेपकर्ता के कारण’ इस केस को फिर से नहीं खोला जा सकता है।

इस पर अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में कोई भी अदालत के समक्ष पेश हो सकता है। इस पर सिंघवी ने दलील दी कि कैसे उस स्थिति में हस्तक्षेपकर्ता को केस को फिर से खोलने की अनुमति दी जा सकती जब यह पूरी तरह से एक निजी शिकायत है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘हम इस बारे में सुनवाई किसी और दिन करेंगे। येदियुरप्पा को भूमि सौदे में भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद 2011 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने 25 दिन जेल कस्टडी में बिताए थे।’