पिछले कुछ वर्षों में न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। भारत में खुदकुशी के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। खासकर छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पूरे समाज को परेशान करने वाली है। 3 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी वार्षिक रपट में बताया गया कि 2022 में भारत में एक लाख सत्तर हजार 924 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए, जो 2021 की तुलना में 4.2 और 2018 की तुलना में 27 फीसद ज्यादा थी। यह आंकड़ा प्रति एक लाख जनसंख्या पर 12.4 रहा, जो भारत में प्रतिवर्ष दर्ज किए जाने वाले आत्महत्या के आंकड़ों का उच्चतम स्तर है।

एनसीआरबी के मुताबिक 2011 से 2021 के बीच एक दशक में आत्महत्या की दर में 7.14 फीसद की वृद्धि देखी गई थी, लेकिन 2021 की तुलना में 2022 में इसमें 4.2 फीसद वृद्धि दर्ज होना बेहद चिंताजनक है। रपट में यह चिंताजनक तथ्य भी सामने आया कि 18-39 वर्ष आयु वर्ग की युवतियों में मृत्यु का प्रमुख कारण आत्महत्या है, जबकि 18-39 आयु वर्ग के युवकों में सड़क दुर्घटनाओं के बाद मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण आत्महत्या है।आत्महत्या के मामले बढ़ने के दो प्रमुख कारण हैं, तनाव और आर्थिक परेशानियां। तनाव से ही किसी भी व्यक्ति में हताशा की शुरुआत होती है, जो उसे आत्महत्या तक ले जाती है।

अगर भारत में आत्महत्या के बढ़ते मामलों की गंभीरता से विवेचना करें तो समाज के अन्य वर्गों के साथ-साथ देशभर में छात्रों के आत्महत्या करने के लगातार बढ़ते मामले काफी भयावह तस्वीर पेश करते हैं। कहीं किसी एमबीबीएस कालेज का कोई छात्र अपने हास्टल के कमरे में स्वयं पर पेट्रोल छिड़क कर आत्महत्या कर लेता है, तो कोई छात्र कालेज की बहुत ऊंची मंजिल से कूदकर जान देता है। पढ़ाई के दबाव के कारण प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों तक के छात्र खुदकुशी कर रहे हैं। छात्रों की आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर डालें, तो बहुत चिंताजनक तस्वीर उभरती है।

60 से ज्यादा छात्रों ने की आत्महत्या

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018 से 2023 के बीच पांच वर्षों की अवधि में आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम जैसे देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में ही साठ से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें 34 छात्र आइआइटी के थे। दरअसल, शिक्षा तथा करिअर में गलाकाट प्रतिस्पर्धा और माता-पिता तथा शिक्षकों की बढ़ती अपेक्षाओं के चलते छात्रों पर पढ़ाई का बढ़ता अनावश्यक दबाव इसका सबसे बड़ा कारण है।

28 अगस्त, 2024 को एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर ‘छात्र आत्महत्याएं: भारत में फैली महामारी’ नामक रपट जारी की गई, जिसमें चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। इस रपट के अनुसार किशोरों में आत्महत्या का कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं (54 फीसद), नकारात्मक पारिवारिक मुद्दे (36 फीसद), शैक्षणिक तनाव (23 फीसद), सामाजिक और जीवनशैली कारक (20 फीसद), हिंसा (22 फीसद), आर्थिक संकट (9.1 फीसद) और भावनात्मक संबंध (9 फीसद) हैं। शारीरिक और यौन शोषण, कम उम्र में विवाह, कम उम्र में मां बनना, घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव आदि कई ऐसे कारण हैं, जिनके चलते युवा लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं।

साइबर ठगी भी बन रही आत्महत्या की वजह

रपट में कहा गया है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में अंकों पर जोर दिया जाता है। इसमें माता-पिता का दबाव, स्वयं तथा शैक्षणिक संस्थाओं से की जाने वाली अपेक्षाएं अंतत: आत्महत्या का कारण बनती हैं। भारत के उन्नीस राज्यों में विश्लेषण से पता चला कि करीब बीस फीसद कालेज छात्र इंटरनेट के आदी हैं, जिनमें से एक तिहाई युवा साइबर ठगी का शिकार होते हैं और उसमें से एक तिहाई आत्महत्या कर लेते हैं। राजस्थान के कोटा शहर में तो छात्रों की आत्महत्या की लगातार बढ़ती घटनाओं से हर कोई आहत है, जहां नीट, जेईई तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आने वाले छात्र निरंतर जान देते रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकना सरकार और प्रशासन दोनों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।

लगातार बढ़ रहे ऐसे मामलों के कारण छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है कि पढ़ाई में आगे बढ़ने के चलते विद्यार्थी अपने आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य को खोते जा रहे हैं। एक ओर जहां विद्यार्थी में विपरीत परिस्थितियों में डटकर लड़ने की भावना होनी चाहिए, वहीं कुछ विद्यार्थी तनाव से डरकर जीवन से ही अपना पीछा छुड़ाने की आत्मघाती सोच बनाते जा रहे हैं।

छात्रों में बेरोजगारी, पारिवारिक समस्या, मानसिक बीमारियों से लेकर भेदभाव और दुर्व्यवहार तक कई ऐसे कारक होते हैं, जो मिलकर आत्महत्या की प्रवृत्ति को उत्प्रेरित करते हैं। छात्र जब अपने परिवार से दूर, कोचिंग संस्थान के बिल्कुल नए माहौल में आते हैं, तो बहुत कुछ उनके साथ ऐसा होता है, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं होता। वित्तीय रूप से कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों पर तो जल्द से जल्द कुछ बनकर अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ज्यादा होती है, लेकिन नौकरी न मिलने या ‘प्लेसमेंट’ न होने की संभावना भी काफी रहती है। ऐसे में छात्रों की आत्महत्या के मामलों में ये कोचिंग संस्थान भी कम जिम्मेदार नहीं होते, जो दाखिला लेते समय छात्र और उसके अभिभावकों को आश्वासन देते हैं कि अब वे बच्चे का सुनहरा भविष्य बना देंगे।

मानसिक दबाव नहीं झेल पा रहे बच्चे

कड़े प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में हर बच्चा मानसिक दबाव नहीं झेल पाता और अपने परिवार से कोसों दूर रह रहे कुछ बच्चे लगातार बढ़ते मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लेते हैं। ऐसे में अभिभावाकों को इस अंधी भेड़चाल के पीछे भागने के बजाय सोचना चाहिए कि न केवल कोटा, बल्कि देशभर के नामी-गिरामी कोचिंग संस्थानों में आने वाले छात्रों की सफलता और चयन की दर कितनी है। इन कोचिंग संस्थानों के पास सफलता की कितनी ही चाबियां क्यों न हों, लेकिन सच यही है कि उनके पास दम तोड़ते बच्चों की जिंदगी बचाने वाला कोई ताला नहीं है।
मनोचिकित्सकों के मुताबिक विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्याओं का प्रमुख कारण उनके ऊपर पढ़ाई का उनकी क्षमता से ज्यादा बोझ और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की होड़ है।

दरअसल, हम भी अपने बच्चों से वह कराना चाहते हैं, जो हम स्वयं नहीं कर पाए और बच्चों पर अपनी ऐसी ही इच्छाओं का बोझ लादकर स्वयं उनके मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। बहरहाल, विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्याओं के मूल कारण चाहे जितने भी हों, हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को केवल ‘डेटा ओरिएंटेड’ नहीं, बल्कि ज्यादा अनुकूल और अधिक स्वस्थ बनाने की सख्त जरूरत है। हालांकि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में जागरूकता लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद आत्महत्याओं के डरावने आंकड़े अब इस दिशा में गंभीरता से सोचने और ठोस कदम उठाने की मांग करते हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि अवसाद ग्रस्त लोगों की मानसिक चिकित्सा के जरिए उन्हें स्वस्थ बनाया जा सकता है।

रपट में कहा गया है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में अंकों पर जोर दिया जाता है। इसमें माता-पिता का दबाव, स्वयं तथा शैक्षणिक संस्थाओं से की जाने वाली अपेक्षाएं अंतत: आत्महत्या का कारण बनती हैं। भारत के उन्नीस राज्यों में विश्लेषण से पता चला कि करीब बीस फीसद कालेज छात्र इंटरनेट के आदी हैं, जिनमें से एक तिहाई युवा साइबर ठगी का शिकार होते हैं और उसमें से एक तिहाई आत्महत्या कर लेते हैं। राजस्थान के कोटा शहर में तो छात्रों की आत्महत्या की लगातार बढ़ती घटनाओं से हर कोई आहत है, जहां नीट, जेईई तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आने वाले छात्र निरंतर जान देते रहे हैं।