भारतीय जनता पार्टी को जितना खतरा विरोधियों से नहीं है, उससे कहीं ज्यादा अंदरूनी नेताओं से है। सुब्रमण्यम स्वामी हाल ही में पार्टी के लिए शर्मिंदगी का सबब बने हैं। केन्द्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले स्वामी पार्टी के कद्दावर नेता अरुण शौरी और राम जेठमलानी की राह पर हैं। जेठमलानी पार्टी विरोधी खासकर तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ बयान देने की वजह से पार्टी से निकाले गए थे। जबकि शौरी ने अपनी पार्टी सदस्यता का नवीनीकरण ही नहीं कराया था, असल बात यह थी कि पिछले साल अक्टूबर में मोदी सरकार के खिलाफ बयान देने के बाद पार्टी ने उनसे दूरी बनाने में ही भलाई समझी। इन दोनों की तरह स्वामी बयान भी पार्टी के लिए मददगार कम और सिरदर्द ज्यादा साबित होते हैं। RBI गवर्नर पर स्वामी के लगातार हमले और उनपर हुआ विवाद इस बात का सबूत है कि भाजपा के लिए वह असहज स्थिति पैदा करने में माहिर हैं। राजन पर स्वामी के बयान पर पार्टी ने खुद को अलग कर लिया और कहा कि यह स्वामी की निजी राय है। स्वामी ने अब मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को अपने निशाने पर लिया है।
बड़ी बात यह है कि स्वामी का दावा है कि उनके पास 27 ऐसे अफसरों की लिस्ट है जो केन्द्र सरकार में वरिष्ठ पदों पर हैं, और वे उन्हें बेनकाब करके रहेंगे। मोदी सरकार के लिए यह खतरे की घंटी जैसा है क्योंकि सिर्फ दो नौकरशाहों पर स्वामी के बयान ने इतना हंगामा खड़ा कर दिया है, अगर वे 27 अफसरों पर कोई आरोप लगाते हैं तो उससे सरकार ही कमजोर साबित होगी। सवाल यह उठेगा कि पार्टी के भीतर का नेता केन्द्रीय अफसरों पर आरोप लगा रहा है और पार्टी व सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही। हाल के विवाद में भी पार्टी नेताओं ने खुद को स्वामी के बयान से किनारे कर पल्ला झाड़ लिया, लेकिन जिस तरह से स्वामी हमलावर हैं, पार्टी की मुश्किलें बढ़नी तय हैं।
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पिछले दिनों स्वामी के अलावा, पार्टी के अन्य नेताओं के बयानों ने भी सरकार व पार्टी की किरकिरी कराई है। चाहे वो योगी आदित्यनाथ का राम मंदिर पर दिया गया विवादित बयान हो या हर दूसरे दिन आग उगलने वाले सांसद साक्षी महाराज, बीजेपी के पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो भड़काऊ भाषण देकर पार्टी की छवि खराब करते हैं। लेकिन स्वामी ने सीधे केन्द्र सरकार के विवेक पर चोट की है।
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स्वामी ने जिन भी अफसरों पर आरोप लगाए हैं या लगाने वाले हैं, वे सभी केन्द्र सरकार की शक्ति से काम कर रहे हैं, ऐसे में उनका बचाव करना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन सत्तारूढ़ दल का नेता ही अगर ऐसे आरोप लगाएगा तो पार्टी और सरकार, दोनों की फजीहत होनी तय है।