विकास पाठक
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन में एबीवीपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीन सीटें अपने नाम की, कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI को सिर्फ एक सीट से संतुष्ट करना पड़ा। इस बार एबीवीपी के तुषार डेढ़ा ने प्रेसिडेंट पद जीत लिया है, वहीं सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी पदों पर भी जीत दर्ज की गई है। NSUI के पास वीपी पोस्ट गई है। अब स्टूडेंट राजनीति में शानदार प्रदर्शन कर रहे ये छात्र सपने बड़े देख रहे हैं। कई को तो आगे चलकर राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी पहचान बनानी है।
क्या बताता है ट्रैक रिकॉर्ड?
लेकिन अब पिछले 20 साल का ट्रैड रिकॉर्ड बताता है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स में मिली सक्सेस कभी भी राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री की गारंटी नहीं देता। शुरुआती दौर में जरूर देश ने कई ऐसे दिग्गज नेता देखे जो छात्र राजनीति से निकलर राष्ट्रीय पटल पर भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। नीतीश कुमार से लेकर अरुण जेटली तक कई ऐसे नेताओं के नाम जहन में आ जाते हैं जिन्होंने स्टूडेंट पॉलिटिक्स के अनुभव को सही तरह से भुनाया और राष्ट्रीय राजनीति में एक सफल करियर बनाया।
हाल के सालों में बात करें तो कन्हैया कुमार ही एक ऐसे नेता याद आते हैं जिन्होंने स्टूडेंट पॉलिटिक्स से बाहर निकलकर देश में भी अपनी एक पहचान बनाई है। लेकिन उनके अलावा कोई दूसरे नेता अभी सुर्खियों में नहीं आ पाया है। इसी वजह से जब अब इस बार फिर कई उभरते नेता सामने आए हैं, सवाल ये उठ रहा है कि क्या वे राष्ट्रीय राजनीति में भी उतना ही सफल हो पाएंगे?
नहीं मिल रहा दूसरा अरुण जेटली!
अब इस सवाल पर एक बीजेपी नेता का कहना है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स का मतलब ये नहीं कि राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री पक्की हो जाएगी। ये नहीं भूलना चाहिए कि अरुण जेटली भी सीधे राजनीति में नहीं आ गए थे। वो एक वकील भी थे जिन्होंने पहले वहां कई सालों का अनुभव लिया और उसके बाद सियासत में आए। इस बारे में आप नेता अशोक तंवर ने भी अपने विचार रखे हैं। वे खुद 2000 के दौरान NSUI की तरफ से प्रेसिडेंट पद के लिए चुनाव लड़ चुके हैं। उनका कहना है कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स में कुछ चुनौतिया हैं। नियम ऐसे बना दिए गए हैं कि एक बार चुनाव लड़ने के बाद दोबारा चुनाव नहीं लड़ा जा सकता, ऐसे में नेता को निखरने का मौका ही नहीं मिलता।
अगर एबीवीपी की बात करें तो पिछले 20 सालों में कोई बड़ा नेता राष्ट्रीय राजनीति तक नहीं पहुंच पाया है। यहां ये समझना जरूरी है कि एबीवीपी ने खुद को संघ से साथ जोड़ रखा है, वो बीजेपी की स्टूडेंट विंग नहीं है।