अमेरिका से अवैध प्रवासी भारतीयों की वापसी इन दिनों चर्चाओं में है। जिस तरह से अमेरिका से अवैध प्रवासी भारतीय लोगों को वापस भेजा जा रहा है, उसको लेकर पंजाब में गुस्सा है। हालांकि पंजाब में कई लोग ऐसे भी हैं जो विदेशों से अपनी जमीन पर नया जीवन शुरू करने के लिए खुद वापस लौटे हैं। उनमें से कई लोगों का कहना है कि वो लंबे समय पहले अपने गांव छोड़कर विदेश में बस गए थे, वहां के पर्मानेंट रेसिडेंट बन गए थे। वापस भारत लौटे लोगों में कुछ ऐसे भी हैं, जो संबंधित देशों के नागरिक बन गए थे और वहां अच्छी नौकरियां और बिजनेस कर रहे थे।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, खुद पंजाब वापस लौटे लोगों में कुछ ऐसे थे, जो पढ़ाई या नौकरी की तलाश में कनाडा, अमेरिका और न्यूजीलैंड गए थे तो कुछ ऐसे भी थे, जिनका जन्म भी इन्हीं देशों में हुआ था। अब इनमें से कई लोग अब वापस आ गए हैं, जिसे कुछ लोग रिवर्स माइग्रेशन कहते हैं। आइए आपको रुबरू करवाते हैं उनमें से ही कुछ लोगों से, बताते हैं उनके सफर के बारे में और वो अमेरिका से डिपोर्ट किए जा रहे अवैध प्रवासियों को लेकर क्या सोचते हैं।
देतवाल बंधु
लुधियाना के देतवाल गांव के रहने वाले धर्मवीर सिंह देतवार और उनके कजिन अर्शवीर सिंह देतवाल साल 2015 में 12वीं की पढ़ाई करने के बाद कनाडा चले गए थे। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और उन्हें 2020 में कनाडाई PR मिल गया। दतेवाल ब्रदर्स ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वो कनाडा में ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करते थे और एक ही घर में रहते थे।
अर्शवीर सिंह ने बताया, “जब मैं काम से वापस आता था, तो धरमवीर सो जाता था और धरमवीर भी सोता मिलता था। हमारे छुट्टी के दिन भी अलग-अलग होते थे। हम कई – कई दिनों तक साथ नहीं बैठ बाते थे और न ही बातें कर पाते थे। कभी-कभी हमारे माता-पिता कुछ महीनों के लिए हमसे मिलने आते थे।”
उन्होंने आगे बताया, “हमें एहसास हुआ कि हमारी जिंदगी बहुत मशीनी हो गई है और हम कुछ किश्तों और ट्रैक्स का भुगतान करने, भोजन करने के लिए काम कर रहे थे, और हमारे पास शायद ही कोई सोशल लाइफ थी। ऐसे समय में जब कनाडा में कई लोग वर्क परमिट बढ़ाने या PR पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, हमने अपना बैग पैक करने और बिना किसी रिटर्न टिकट के भारत वापस आने का फैसला किया।
28 साल के धर्मवीर ने बताया कि वो इस साल जनवरी में वापस आए हैं और अभी फिलहाल उनका वापस जाने का प्लान नहीं है। अर्शवीर ने कहा कि भारत तेजी से विकास कर रहा है और पिछले दस सालों से हमारे मित्र और परिवार का आराम ही वह चीज है, जिनकी कमी हम महसूस कर रहे थे।
धर्मवीर के पिता लखवीर सिंह देतवाल कहते हैं कि अर्शवीर धर्मवीर का छोटा भाई है और हम एक संयुक्त परिवार हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास करीब 70 एकड़ जमीन है और हम खेती करते हैं। 2015 में जब हमने उन्हें स्टूडेंट वीजा पर साथ भेजा था, तब ऐसा समय था जब हर कोई अपने बच्चों को विदेश भेज रहा था। लेकिन हमने आत्ममंथन किया और अपने बेटों से पूछा। वे वापस आकर खेती में हमारी मदद करने के लिए तैयार हो गए। अब जिंदगी व्यवस्थित है।
ग्रीन कार्ड होल्डर्स
64 साल के हरपाल सिंह उप्पल को साल 2017 में ग्रीन कार्ड मिल गया था और वो उसी साल अपनी पत्नी और बेटे के साथ जगराओं के कोठे पुना गांव से कैलिफोर्निया चले गए थे। हरपाल सिंह उप्पल द इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं, “मुझे ग्रीन कार्ड खून के रिश्ते की वजह से मिला क्योंकि मेरी पत्नी का परिवार अमेरिका में रहता है। शुरू में हम दो महीने के लिए गए और वापस आ गए क्योंकि मेरी मां यहां अकेली थीं।
उस समय हरपाल सिंह का बेटा पंजाब में सिविल इंजीनियरिंग कर रहा था। वो कहते हैं, “साल 2018 में मेरा बेटा पर्मानेंटली शिफ्ट हो गया। तब मैं और मेरी पत्नी मां की देखभाल करने के लिए एक-एक करके छह-छह महीने भारत और अमेरिका रहते थे। मैं कैलिफोर्निया में ट्रक चलाता था और इसलिए खुश था कि जब भी मैं वहां जाता था तो काम मौजूद था।”
हरपाल सिंह आगे कहते है, “हालांकि पिछले साल मैं भारत लौट आया और अब हम अपना ग्रीन कार्ड सरेंडर करके विजिटर वीजा लेने की योजना बना रहे हैं। हमने दो साल पहले अपने बेटे अर्शदीप सिंह की शादी कर दी थी और उसकी पत्नी, जिसके पास कनाडा का PR है, उसने भी हमारे साथ गांव में ही रहना पसंद किया है। मेरी बेटी की शादी कनाडा में हुई है।”
उप्पल ने बताया कि उन्होंने अमेरिका और कनाडा को एक्सप्लोर करने के लिए कई जगहों की यात्राएं की। उन्होंने कहा, “मैंने जो पाया है, वह यह है कि ये देश कुशल लोगों (skilled people) के लिए हैं जो डॉलर में पैसा कमाना चाहते हैं और रुपये में बचत करना चाहते हैं। वहां सिस्टम व्यवस्थित है, लेकिन कोई सोशल लाइफ नहीं है और जीवन का एक बड़ा हिस्सा लोन की किश्तें चुकाने में बीत जाता है।”
हरपाल सिंह ने कहा कि उनका मानना है कि अगर हमारे मूल स्थान पर दो टाइम खाने की व्यवस्था है तो हमें विदेश जान की जरूरत नहीं। वो कहते हैं कि अमेरिका से लोगों को डिपोर्ट होते देख दुख होता है। उन्होंने कहा, “लोगों को लीगल तरीकों से विदेश जाना चाहिए क्योंकि जब तक कोर्ट में उनका केस तय नहीं होता तब तक अमेरिका में अवैध प्रवासी की लाइफ एक सेकेंड क्लास सिटीजन की तरह है। हालांकि यो स्किल्ड युवा हैं और यहां ज्यादा कमा नहीं पा रहे हैं तो उन्हें विदेशी जमीन पर जाकर अपने सपने पूरे करने का प्रयास करना चाहिए।”
उप्पल के पास 45 एकड़ जमीन है और वो कांट्रेक्ट पर 40 एकड़ जमीन लेते हैं। इस समय उनका बेटे आलू, चावल और मक्के की खेती कर रहा है।
‘सांझा घर’
कनाडा में अपना 50वां जन्मदिन मनाने के बाद 52 साल के चरणजीत सिंह अक्टूबर 2023 में लुधियाना स्थित अपना गांव धांडे वापस लौटे। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम इस बात पर पूरी तरह से स्पष्ट थे कि 50 साल की उम्र पूरी होने के बाद मैं और मेरी पत्नी अपने गांव चले जाएंगे।
चरणजीत सिंह 1998 में शादी के बाद कनाडा गए थे। उनकी पत्नी हरमिंदर कौर मंगत के पास कनाडा का PR था। उन्होंने कहा, “शुरुआती सालों में, मुझे पैसे कमाने के लिए जो भी काम मिला, वो मैंने किया और साल 2005 में मैंने ट्रक कंपनी शुरू की। इस कंपनी में 25 ट्रक थे। साल 2016 में मैंने ग्रोसरी स्टोर शुरू किया। मेरी पत्नी डॉयरेक्टर ऑफ नर्सिंग के तौर पर काम कर रही थीं।”
उन्होंने बताया कि साल 2020 में कनाडा में उन्होंने अपना काम समेटना शुरू किया। साल 2021 तक अपनी ट्रक कंपनी और ग्रोसरी स्टोर बेचने के बाद उन्होंने नीलों-रोपड़ नेशनल हाईवे पर 1.5 एकड़ जमीन पर 2020 में सांझा घर का निर्माण शुरू किया। चरणजीत सिंह ने बताया, “इसलिए अक्टूबर 2023 में जब हम स्थायी रूप से वापस आए, तब तक सांझा घर बनकर तैयार हो चुका था। कनाडा में एक संतुष्ट जीवन जीने के बाद, अब हम भारत में अपनी लाइफ का सेकेंड फेज जी रहे हैं।
सांझा घर में क्या करते हैं चरणजीत सिंह?
चरणजीत सिंह ने बताया, “हमने इस सांझा घर कैंपस में ही अपना घर भी बनाया है, जहां हम ऑर्गेनिक सब्जियां उगाते हैं और उन्हें अपने रेस्तरां में पकाकर ग्राहकों को ताजा पंजाबी भोजन उपलब्ध कराते हैं। हमारे पास दो कमरे भी हैं, जहां लोग वीक एंड बिताते हैं… हमारे सांझा घर में लगभग 20 लोगों को रोज़गार मिला है।”
चरणजीत सिंह के परिवार में पत्नी के अलावा एक 19 साल की बेटी और 25 साल का बेटा है। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी कनाडा में स्टूडेंट है और मेरे बेटे का खुद का IT बिजनेस है। उन दोनों में कनाडा में रहना ही चुना। हमने अपने बच्चों से कहा है कि जब भी उन्हें हम से मिलना हो तो वो भारत आएं।” वो आज के माता-पिता को सलाह देते हैं कि वे अपने बच्चों के जीवन में इतना हस्तक्षेप न करें कि वे घुटन महसूस करें। चरणजीत कहते हैं कि बच्चों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाएं। वो कहते है, “मैं युवाओं को विदेश जाने से नहीं रोकता, लेकिन यहां भी करने को बहुत कुछ है।” पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें