मध्य प्रदेश की सियासत में साल 1977 बेहद गहरा असर रखता है। साल 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद से लगातार मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही थी। लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाई गई इमरजेंसी खत्म होने के बाद पहली बार प्रदेश में गैर कांग्रेसी जनता दल की सरकार आई। इस सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर एकमत से राजनीति का संत कहे जाने वाले कैलाश जोशी को चुन लिया गया। लेकिन वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सिर्फ सात महीने ही रह सके। कैलाश जोशी के मुख्यमंत्री पद से हटने का कारण मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें हुई एक विचित्र बीमारी को बताया गया, जो उनके पद से हटते ही ठीक हो गई। कैलाश जोशी भोपाल से भाजपा के सांसद भी रहे हैं।
मध्य प्रदेश के देवास के रहने वाले भाजपा नेता कैलाश जोशी मध्य प्रदेश में इमरजेंसी के दौरान विरोध का चेहरा रहे थे। आपातकाल लगने के बाद कैलाश जोशी भूमिगत हो गए। इस दौरान पुलिस उन्हें जी-जान से ढूंढ रही थी। लेकिन एक महीने तक भूमिगत रहने के बाद 28 जुलाई, 1975 को उन्होंने मध्य प्रदेश की विधानसभा के गेट पर पुलिस को बुलाकर गिरफ्तारी दी। उन्हें 19 महीनों तक मीसा के तहत नजरबंद रखा गया।
साल 1977 में मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद उन्हें पहले जनता पार्टी के विधायक दल का नेता और बाद में मुख्यमंत्री चुन लिया गया। 26 जून 1977 को वह मध्य प्रदेश के नवें और पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन इसी के कुछ दिनों बाद कैलाश जोशी को एक विचित्र बीमारी हो गई। मध्य प्रदेश के एक पुराने पत्रकार ने बताया कि पूर्व सांसद कैलाश जोशी मुख्यमंत्री रहते हुए दिन में 18-18 घंटे तक सोते रहते थे। उन्हें सचिवालय गए हफ्तों हो जाते थे। यहां तक कि अफसर फाइलें लेकर जब उनके घर जाते थे तो कई बार फाइलों पर हस्ताक्षर करते हुए भी कैलाश जोशी ऊंघने लगते थे। उनकी इस दशा के कारण सरकार के साथ ही पार्टी में भी असंतोष बढ़ने लगा।
मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में ऐसी चर्चाएं भी उठने लगीं कि कुछ लोगों ने उनके ऊपर तंत्र-मंत्र करवाया है। बताया जाता है कि बाद में केंद्रीय नेतृत्व ने एक बड़े नेता को सीएम कैलाश जोशी से मिलने के लिए भेजा। जोशी उनसे मिलने के लिए अपने घर से निकले भी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद उन्होंने अपने ड्राइवर से वापस घर चलने के लिए कहा और फिर से सो गए। करीब सात महीने तक चली जनता दल की पहली सरकार में जब मुख्यमंत्री कैलाश जोशी की हालत नहीं सुधरी तो उन्होंने खुद ही इस्तीफा देने का मन बना लिया।
बताया जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने उनसे ये भी कहा कि आप डाकबंगले में रहने लगें। हम वहीं आपको फाइल भिजवा दिया करेंगे। लेकिन उन्होंने आलाकमान को 17 जनवरी 1978 को अपना इस्तीफा भेज दिया। चौंकाने वाली बात ये भी थी कि उनके इस्तीफा देते ही वह बीमारी आश्चर्यजनक रूप से कुछ वक्त के बाद ठीक हो गई।
अपनी इस विचित्र बीमारी के बारे में जोशी ने कई मीडिया इंटरव्यू में भी जिक्र किया है। उनका कहना है कि उन्हें क्यों यह बीमारी हुई थी और कैसे ठीक हुई, इस बारे में कुछ पता नहीं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था,” ये सही बात है कि मुझे बीमारी हुई थी। मैं लगातार सोता रहता था। इसलिए मैं खुद दिल्ली गया और मैंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई और चंद्रशेखर से मुलाकात की। मैंने उन दोनों से कहा कि मुझे त्यागपत्र देना है। मेरी बातें सुनकर मोरारजी भाई ने मुझे बहुत समझाया और कहा कि डाक बंगले में जाकर रहो, वहां फाइलें पहुंचती रहेंगी। लेकिन मैंने ये ठीक नहीं समझा और इस्तीफा सौंप दिया। इस्तीफा देने के साल भर बाद बीमारी ठीक हो गई। आज तक फिर मुझे वो बीमारी नहीं हुई। मैंने पता लगाने की बहुत कोशिश की। लेकिन मुझे आज तक पता नहीं चला कि वो बीमारी हुई क्यों थी?”
