यहां सेवा (गुजरात) और कुदुंबश्री (केरल) की संस्थाओं का उल्लेख करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। स्व-रोजगार और स्वयं-सहायता समूहों की इन शक्तियों को समझते हुए महिलाओं के रोजगार के अवसर इन संस्थाओं ने प्राप्त करवाए। इन सब योजनाओं से भारत सरकार के लक्ष्य जैसे ‘सशक्त महिला, सशक्त भारत’, ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ को और मजबूती मिली है। इन योजनाओं को और बेहतर बनाया जा सकता है।
साल-दर-साल हस्तशिल्प और लघु उद्योग में काम करते पुरुष और महिलाएं बहुत दिक्कतों का सामना करते हैं। जैसे विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण या कार्यशाला, जिनसे उनके उत्पाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिकें। हालांकि भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात हैं, लेकिन छोटो-छोटे कारीगर, बुनकर, अब भी हाशिये पर ही रह गए हैं।
जरूरत है तकनीक और प्रशिक्षण दोनों को सबसे गरीब किसान और कारीगर तक पहुंचाना। आधुनिक प्रशिक्षण और कार्यशालाओं में उनका मनोबल बढ़ाना। फिर बाजार में उन्हें ‘आनलाइन मार्केट प्लेस’ से जोड़ना, ताकि बिचौलियों का हस्तक्षेप खत्म हो सके और वे स्वयं ही हर प्रकार का लेन-देन कर सकें। उन्हें आधुनिक मार्केटिंग और पैकेजिंग की तकनीक भी सिखाई जानी आवशयक है।
दिल्ली और अन्य शहरों में होने वाले हाट-बाजारों में कारीगरों और खासतौर पर महिलाओं का रहने-सहने का प्रबंध, उनके खाने-पीने, और दिहाड़ी का इंतजाम कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण काम हैं। छोटे-छोटे शहरों से अपना हस्तशिल्प का सामान कारीगर और बुनकर बड़े शहरों में तभी बेचने आएंगे, जब उनको इस तरह का प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे उनका मनोबल बढ़े। इसके अलावा और सबसे महत्त्वपूर्ण है महिलाओं की वित्तीय साक्षरता, ताकि वे हस्तशिल्प से संबंधित लेन-देन का मूल्यांकन स्वयं कर सकें। इस प्रकार भारत सरकार की स्वदेशी योजनाओं और ग्रामीण इलाकों को आत्मनिर्भर बनाने में भी सहारा मिलेगा।
इसी प्रकार एक अन्य सुझाव शहरी इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए, जो रोजगार के साधन ढूंढा करती हैं। कोरोना काल में, 2020 में शहरों से खबरें आती थीं कि कैसे महिलाएं जो घरों में काम करती थीं, उनकी रातोंरात नौकरी चली गई। इन्हीं विचार-विमर्शों के बीच ‘शहरी गरीबी’ या ‘अर्बन पावर्टी’ चर्चा में रही। विशेषज्ञों का कहना है कि ‘शहरी गरीबों’ के लिए भी मनरेगा की तरह शहरी आजीविका पर केंद्रित कोई योजना चलनी चाहिए।
ऐसे में शहरी स्व-सहायता समूहों को भी सशक्त बनाना चाहिए। पूर्वी दिल्ली की एक कालोनी में किए गए एक सर्वेक्षण में यह निकल कर आया कि महिलाओं को अगर घरों में ही कोई व्यवसाय उपलब्ध कराया जाए तो वे ऐसा काम करना चाहेंगी। अगर गली-मोहल्ले में, जहां जगह हो, वहां ऐसा कोई प्रशिक्षण केंद्र खोला जाए, जहां उन्हें सिलाई-कढ़ाई, पेंटिंग, मेहंदी डिजाइन, अचार, पापड़, रूमाल या बाटीक का काम सिखाया जाए तो वे ऐसे कार्यों को सीखना और उन्हें व्यवसाय के तौर पर भी करना चाहेंगी।
घर से काम के अवसर से वे अपने बच्चों की देख-रेख भी कर सकेंगीं और वे अपने घरों के काम भी ठीक प्रकार से कर पाएंगी। ग्रामीण स्व-सहायता समूहों, जो कि हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं को आगे बढ़ाए हुए हैं, वहां से हमें यह प्रेरणा लेने की जरूरत है। वैसे भी शहरों के अपने कोई अनूठे हस्तशिल्प और हथकरघा के काम नहीं हैं। दिल्ली में दुनिया भर के कारीगर अपने हस्तशिल्पों के स्टाल लगाते हैं, पर दिल्ली का खुद का अपना कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय स्तर का हस्तशिल्प, जिसको भौगोलिक संकेत प्राप्त नहीं है।
हस्तशिल्प और हथकरघा के काम न तो सिर्फ शहरी महिलाओं की गरीबी मिटाने में सहयोग करेंगे, बल्कि शहरी क्षेत्रों के हस्तशिल्प को भी बढ़ावा देंगे। दिल्ली में अगले साल अंतरराष्ट्रीय शापिंग फेस्टिवल होने वाला है। ऐसे में अर्बन हैंडीक्राफ्ट जो कि घरेलू गरीब महिलाओं द्वारा बनाए गए हों, वे प्रदर्शित किए जाएं, तो यह एक अच्छी पहल होगी। ल्ल