शिवसेना सांसद संजय राउत ने रविवार को स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत को हत्या करार देते हुए हैरानी जताई कि क्या भारत की नींव इतनी कमजोर है कि 84 साल का बुजुर्ग व्यक्ति उसके खिलाफ जंग छेड़ सकता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार की आलोचना करना देश के खिलाफ होना नहीं है।
पार्टी के मुखपत्र सामना में राउत ने लिखा कि 84 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति से डरी सरकार के चरित्र में तानाशाह है, लेकिन दिमाग से ये बेहद कमजोर है। एल्गार परिषद-माओवादी मामले में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और अन्य की गिरफ्तारी पर उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियों का समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन बाद में जो हुआ उसे स्वतंत्रता पर नकेल कसने की एक साजिश कहा जाना चाहिए।
राउत ने कहा कि इस मामले में गिरफ्तार किये गए सभी लोग, एक विशेष विचारधारा से आते हैं जो साहित्य के जरिये अपनी बगावत को आवाज देते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या वे इससे सरकार का तख्ता पलट कर सकते हैं। राज्यसभा सांसद ने कहा कि स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत हो गई जबकि पीएम मोदी ने उन लोगों के साथ बातचीत की, जो कश्मीर की स्वायत्तता चाहते हैं और वहां अनुच्छेद 370 को बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं।
सांसद ने कहा कि हम माओवादियों और नक्सलियों की इस विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन हिरासत में स्टेन स्वामी की मौत को भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। चाहे माओवादी और नक्सली कश्मीरी अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक हों। उन्होंने प्रेस की आजादी पर लगाम कसने वाले वैश्विक नेताओं की सूची में मोदी का नाम आने पर भी हैरत जताई।
उन्होंने कहा कि स्थिति अब भी भारत में नियंत्रण से बाहर नहीं हुई है। चाहे सरकार की आलोचना करने वाले को राजद्रोह के कानूनों के तहत जेल में डाला गया है। भारतीय प्रेस भी इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाता है। राउत ने कहा कि सरकार को चाहिए कि हिटलर जैसे चरित्र को अपनाने की बजाए वो लोगों की बात को तरजीह देने की कोशिश करे। स्टेन स्वामी की जेल में मौत लोकतंत्र पर करारा तमाचा है। क्या किसी भी देश में इस तरह की गतिविधि को मान्यता दी जा सकती है।