श्रीलंका में खाद्य संकट बना हुआ है। कोरोना महामारी से पहले 2.2 करोड़ आबादी में से करीब 10 फीसद खाद्य सुरक्षा मुद्दों से जूझ रहे थी तथा आर्थिक पाबंदियों तथा रसायनिक उर्वरकों के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध से स्थिति और बिगड़ी है। देश की केंद्रीय सांख्यिकी एजंसी द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि देश की करीब एक-तिहाई आबादी को खाने के सामान के मामले में सहायता की जरूरत है। उनके पास जरूरी खाने के सामान और पोषक पदार्थों की कमी है। जनगणना और सांख्यिकी विभाग के अनुसार, वर्ष 2019 के अंत तक श्रीलंका की 9.1 फीसद आबादी के पास जरूरी खाद्य पदार्थों की कमी थी। इसमें से 2,00,000 लोग भुखमरी के कगार पर हैं। आंकड़ों के अनुसार, परिवार के स्तर पर खाद्य असुरक्षा बढ़कर 9.45 फीसद पर पहुंच गई है। यह बताता है कि प्रत्येक 10 परिवार में एक जरूरी खाद्य पदार्थों और पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहा है।
विभाग ने कहा कि हालांकि कोविड-19 की रोकथाम के लिए लगाई गयी विभिन्न पाबंदियों से 2020 में स्थिति और बिगड़ी है। इससे लोगों की आजीविका प्रभावित हुई और वे गरीबी की जाल में फंसते चले गए।राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पिछले साल अप्रैल में रसायनिक उर्वरकों के उपयोग पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी थी। इससे देश में चावल और अन्य जरूरी खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
उर्वरक प्रतिबंध से पहले श्रीलंका चावल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर था। देश में विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से स्थिति और बिगड़ी है। श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय समन्वयक हाना ंिसगर हैम्डी ने कहा कि करीब 49 लाख लोगों को फिलहाल खाद्य सुरक्षा की जरूरत है। यह देश की आबादी का करीब 25 फीसद है।