कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली के वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को खुला ख़त लिखा है। अर्थशास्त्रियों ने तीनों कानूनों को वापस लेने की बात कही है। उनका कहना है कि ये कानून छोटे औऱ मार्जिनल किसान के हित में नहीं हैं। इसमें नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रूरल डिवेलपमेट से जुड़े डी नरसिम्हा रेड्डी भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कृषि मार्केटिंग सिस्टम में बदलाव जरूरी थे लेकिन यह कानून कोई भी जरूरत पूरी नहीं करता है।

वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा है कि केंद्र सरकार ने ये कानून गलत मान्यताओँ के आधार पर बनाए हैं। उन्होंने पांच पॉइंट में यह बताया कि आखिर छोटे किसानों के लिए यह कानून नुकसानदायक कैसे है।

इस पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने कानून बनाकर राज्य की भूमिका को इग्नोर किया है। किसानों के हित में राज्य सरकारों की भूमिका कम हो जाएगी और छोटे किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि राज्य के अंतरगत मंडियां ज्यादा सही थीं जबकि केंद्र के अंतरगत आने वाले बाजारों में बड़े व्यापार को जगह मिलती है। इससे छोटे किसानों को नुकसान होगा। किसानों के उत्पाद की खरीद राज्य सरकारें अच्छी तरह कर सकती थी जबकि वृहद् स्तर पर केंद्र सरकार इस काम को ठीक से नहीं कर सकेगी।

इस लेटर में कहा गया है कि 20 राज्य पहले ही एपएमसी ऐक्ट में बदलाव कर चुके हैं जिसके तहत राज्य सरकारों के अंतरगत प्राइवे मंडियां भी काम करेंगे। इकिनॉमिस्ट्स ने कहा कि राज्य सरकारों के कानून में प्राइवेट मार्केट को रेग्युलेट करना का प्रावधान है जबकि केंद्र सरकार के कानून में ऐसा नहीं है। ऐसे में किसानों को कई शुल्क देने पड़ सकते हैं। वहीं ट्राइबल एरिया के किसानों को मुसीबत का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनके करीब कोई स्ट्रक्चर्ड मार्केट नहीं उपलब्ध होती है।

खत में कहा गया है कि 2006 में बिहार में एपएमसी ऐक्ट हटने के बाद देखा गया है कि किसानों के पास खरीदारों के विकल्प बहुत कम रह गए हैं ऐसे में किसानों को फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलती है। वे दूसरे राज्यों के मुकाबले कम कीमत में अपनी फसल बेचने के मजबूर हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में असमान प्लेयर्स को लेकर लेटर में कहा गया है कि भूमि को पट्टा करने में उदारीकरण की नीति अपनाने से छोटे किसानों के कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की तरफ ही जाना पड़ेगा और कानून में उनके हितों की रक्षा की बात नहीं की गई है। इसके अलावा यह भी कहा गया कि कुछ ही बड़े लोगों के हाथ में ऐग्रो बेस्ड कंपनियों की कमान है। किसानों को बेहतर अवसर देने के लिए किसानों और एफपीओ का शामिल होना बहुत जरूरी है।