विशेषज्ञ कहते हैं कि हिंसा और अपराध की आदत धीरे-धीरे डाली जाती है, फिर ये चीजें लोगों के जीवन का हिस्सा हो जाती हैं। जैसे कि कहा जाता है कि तीस प्रतिशत जलने के बाद आपको जलने के दर्द का अहसास खत्म हो जाता है, वही बात शायद अपराधों पर लागू होती है कि उसकी भयवहता और तीव्रता का अहसास नहीं रहता। ये हमारे रिश्तों को क्या हुआ है।
हमने तो ऐसे लोगों को आंखों से इसी समाज में देखा है, जहां अगर किसी बच्चे के माता-पिता नहीं रहे, तो पड़ोसियों ने उसे पाल दिया। या मां के अभाव में भाई के बच्चों को बहन अपने साथ ले गई। अथवा बच्चे ननिहाल-ददिहाल में पले। भाई के बच्चों को छोटे भाई के परिवार ने पाला। किसी ने किसी गरीब बच्चे को देखा और उसकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया। ये सब चरित्र इसी समाज में मिलते रहे हैं। किसी दूसरे के बच्चे की देखरेख, पालन-पोषण के लिए जो धैर्य चाहिए, वह तो छोड़िए, अपने ही परिवार के बच्चों बुजुर्गों, पति, पत्नी, महिला या पुरुष मित्र की जरा-सी बात पर हत्या समाज में फैली किसी बड़ी बीमारी की ओर संकेत करती है।
हमारे पास बहुत बड़ा घर हो, बहुत महंगी कार हो, एक से एक महंगे सामान के मालिक हों, लेकिन यदि मामूली से मानवीय मूल्य हम में नहीं है, उन्हें हम अपने लिए जरूरी भी नहीं मानते, तो इन सामान के महंगे होने पर चाहे जितना इतरा लीजिए, किसी मुसीबत में किसी आपदा में ये आपके किसी काम नहीं आएंगे। आपके लिए दौड़ेगा तो मनुष्य ही, चाहे वह कोई परिजन हो, रिश्तेदार हो, कोई पड़ोसी या दोस्त।
पति का पत्नी को मारना, पत्नी का पति को, प्रेमिका का प्रेमी को, प्रेमी का प्रेमिका को मारना, बलात्कारियों से घृणा के मुकाबले अपनी-अपनी जाति वालों द्वारा उनका सम्मान, जेल से छूटने पर ‘विक्ट्री साइन’ बनाना, जैसे हर रोज की बात हो चली है। हम ऐसी घटनाओं पर चाहे जितना दुख प्रकट करते रहें, लेकिन दुख का यह प्रकटीकरण अपराधियों तक नहीं पहुंचता है। अपराध और हिंसा बढ़ती ही जाती है। चाहे जितने कानून बना दीजिए, लोग कानून की जरा सी भी परवाह नहीं करते। करते होते तो क्या ऐसा होता कि अपराध करने के बाद अपराधी शर्म के बजाय हंसते हुए जाएं।
विकृतियां परत-दर परत
2019-21 के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों को अगर देखें तो भारत में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। इस दौरान 4.7 करोड़ लोगों ने आत्महत्या की। इसमें औरतों की संख्या 17.56 लाख थी। सबसे ज्यादा आत्महत्याएं लटक कर होती हैं। तनाव, पारिवारिक विवाद, बीमारी के कारण लोग जीवन को समाप्त कर देते हैं।
संबंधों में पांच तरह की हिंसा अकसर देखने में आती है- शारीरिक, मौखिक, मानसिक, यौन और सामाजिक-आर्थिक। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2001 से 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में जितनी भी हत्याएं होती हैं, उनमें प्यार के कारण होने वाली हत्याएं अपने देश में तीसरे नंबर पर आती हैं। इस दौरान जमीन-जायदाद और दुश्मनी के कारण होने वाली हत्याओं में कमी देखी गई, लेकिन प्यार के कारण होने वाली ऐसी घटनाओं में अट्ठाईस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। इसमें प्यार और विवाहेतर संबंध भी शामिल थे।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में प्रेम के कारण 384 हत्याएं हुर्इं, यानि कि हर रोज एक। गुजरात में 156 और पंजाब में ऐसे 98 मामले सामने आए। जबकि उत्तर प्रदेश में प्रेम के कारण इस दौरान सबसे अधिक 395 मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा तमिलनाडु, कर्नाटक और दिल्ली में प्यार के कारण होने वाली हत्या दूसरे नंबर पर रहीं। हत्या का तीसरा और चौथा कारण छत्तीसगढ़, ओड़ीशा, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखंड और असम रहा। इन हत्याओं में धर्म , जाति, वर्ग आदि प्रमुख कारण रहे।
पंजाब के गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सतनाम सिंह ने 2005 से 2012 तक की प्रेम के कारण होने वाली हत्याओं का अध्ययन किया था। इस तरह की घटनाओं में 44 प्रतिशत कारण अंतर्जातीय विवाह रहे। 56 प्रतिशत में परिवार लड़की या लड़के अपने आप लिए गए विवाह के निर्णय को स्वीकार न कर सके।
अमेरिका के द सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने अपने अध्ययन में पाया कि वहां चार में से एक महिला और दस में से एक आदमी को प्रगाढ़ संबंधों में हिंसा झेलनी पड़ती है। अमेरिका में हर मिनट बीस पर लोग इस तरह की हिंसा के शिकार होते हैं। इनमें भावनात्मक हिंसा शामिल नहीं है। इसका बड़ा कारण संबंधों को कंट्रोल करने की इच्छा थी।