देश में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अभ्यर्थी के लिए अंक नंबर वाली एक विशिष्ट पहचान होनी चाहिए ताकि अभ्यर्थी को परीक्षा के लिए अपना नाम नहीं बताना पड़े। परीक्षा प्रतियोगिताओं में पारदर्शिता लाने के लिए लोकसभा की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से संबंधित समिति ने केंद्र सरकार से यह सिफारिश की है। हाल ही में इस रपट को लोकसभा के पटल पर पेश किया गया है।
समिति में सांसद शामिल
रपट समिति के अध्यक्ष डा फग्गन सिंह कुलस्ते की अगुआई में तैयार की गई है, इसमें लोकसभा व राज्यसभा के सांसद शामिल थे। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि अगर झूठे जाति प्रमाणपत्र का मामला सामने आता है तो इस स्थिति में दंड के लिए एक विधेयक बनाया जाएगा। समिति ने कहा है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित अभ्यार्थियों के नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए ताकि इनके साथ हो रहे भेदभाव को समाप्त किया जाए। इस मामले में समिति ने केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को निर्देश जारी करने के लिए कहा है, इसके अतिरिक्त मामले में की गई कार्यवाही की रपट भी समिति से समक्ष तीन माह के अंदर पेश करने के लिए कहा है।
रोजगार प्रक्रिया को बनाया जाएगा पारदर्शी
समिति ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस समुदाय से संबंधित अभ्यर्थी का चयन होने के बाद भी संबंधित उम्मीदवार के नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। समिति ने साफ कहा कि इस श्रेणी में दिए जाने वाले रोजगार देने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जा सके।
मेट्रो में चोरी हो गया पूर्व केंद्रीय मंत्री का मोबाइल, पुलिस में मचा हड़कंप
इसके लिए राज्य सरकारों को प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को अधिक वैज्ञानिक बनाने की सिफारिश की गई है ताकि सत्यापन की प्रक्रिया आसान व सुरक्षित हो सके। इस स्थिति में भी यदि गड़बड़ी के मामले सामने आते हैं, मामले में सरकार एक विधेयक लेकर आए और सख्ती से दंड देने की व्यवस्था को लागू करे।
समिति ने 45 दिन से अधिक वाले काम जो कि निजी ठेकेदारों की मदद से किए जाते हैं, उनमें भी इस समुदाय के लिए आरक्षण देने की सिफारिश की है। समिति ने सभी उपक्रमों, बैंकों आदि में तैनात किए जाने वाले कर्मचारियों के मामले में सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है और इन तैनातियों में गड़बड़ियों को रोका जा सके। इसके लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित करने के लिए कहा है।